ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
सोमवार, 15 मार्च 2021
तुरपन
Labels:
कविता
तूलिका और लेखनी के सहारे अहसासों को पिरोती रचनाओं की राह की एक राहगीर.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
खुशकिस्मत औरतें
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पम्मी जी बहुत धन्यवाद 😊
जवाब देंहटाएंआज कल कहाँ वो बात
जवाब देंहटाएंनही चाहिए किसी को भी
किसी का आपस में साथ
तुम बात कर रहे
बखिया की ,तुरपन की
कपड़े पहने जाते है
अब फटे या स्टोनवाश ।
हटाएंअकेले चल कर तो
मन बीहड़ हो जाएंगे
गर उड़ गई रिश्तों की
नमी और खुशबू भी
आने वाली पीढ़ी को
विरासत क्या दे जाएंगे...!!
बहुत शुक्रिया संगीता जी😊
अभी तक अटक रहे हो
हटाएंटांकों में नेह के धागों में
क्षमा की तो सुंई भी अब
चुभ जाती है लोगों को
बहुत देख चुकी हूँ
ये नाते रिश्ते ज़िन्दगी में
बस मज़ा आता है सबको
अब अपनी ही बन्दगी में ।
वाह मजा आ गया आपको और संगीता जी को पढ़कर,एक से बढ़कर एक, शानदार, यहाँ तो कविताओं की बहार है , ऊपर भी नीचे भी , ये आनंद और कहाँ , मन खुश हो गया , खूबसूरत पोस्ट, आप दोनों को बधाई हो, नमन
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार ज्योति जी😊
हटाएं