ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 17 मार्च 2022

श्रीलंका यात्रा संस्मरण



कोरोना के चलते हम लोग दो साल से बेटे-बहू  से नहीं मिल सके थे फिर अपनी तीन महिने की पोती मीरा से मिलने की भी मन में तीव्र उत्कंठा थी, तो जनवरी के अन्त में हम लोग सिंगापुर गए। कड़ाके की ठंड से वहाँ पहुँच कर और बच्चों से मिल कर बहुत  राहत महसूस की।

कुछ दिन बाद सिंगापुर आवास के दौरान ही बच्चों ने श्रीलंका घूमने का प्रोग्राम बनाया।

श्रीलंका पहुँच कर हम लोग एयरपोर्ट से पहले कोलम्बो में " Shangri la” होटल में एक रात रुके।ये वही होटल है जहाँ पर 2019 में टैररिस्ट अटैक हुआ था। उसके गलियारों से और सुरक्षा की जाँच- प्रक्रिया से गुजरते हुए उस अटैक को स्मरण कर रीढ़ में सुरसुरी सी महसूस हो रही थी।रूम की खिड़की से सामने ही बेहद खूबसूरत नीला- नीला`हम्बनटोटा पोर्ट’( Hambantota  Port ) दिखाई दे रहा था।

श्रीलंका भ्रमण के लिए हमने Galle( गाले) में रहना निश्चित किया था अत: दूसरे दिन ब्रेकफास्ट के बाद हम लोग टैक्सी से गाले के लिए निकल गए। गाले जाने के दो मार्ग हैं , हमने नव- निर्मित हाईवे चुना।एक तो ये मार्ग दूसरे से कुछ छोटा था और बेहद मनोरम था।सारे रास्ते छोटी- छोटी पहाड़ियों, चाय-बागान व केले, सुपारी, काली मिर्च, दालचीनी, इलायची, सुपारी के लम्बे झूमते पेडों के हरे- भरे रास्तों से गुजरते मन प्रफुल्लित हो गया।

गाले में बेटे ने " समुद्र हाउस” व "कोगला लेक हाउस “ दो विला बुक किये थे। कुछ दिन कोगला लेक हाउस में रह कर हम बाकी दिन समुद्र- हाउस में रहे। जिसकी  सबसे बढ़िया बात थी कि पिछला गेट खोलते ही हम सीधे बीच पर होते थे।और खाते, आराम करते सामने रूम से भी  समुद्र देख सकते थे, मानो समुद्र की गोद में ही जा बैठे हों। वहाँ के इंटीरियर में डच प्रभाव दिखाई देता था। दोनों ही विला में चार- पाँच केयर- टेकर थे जो सारी व्यवस्था चुस्त- दुरुस्त रखते थे।खाना भी वहाँ जो कुक थे वे बहुत बढिया बनाते थे। रोज ही बदल-बदल कर दाल,कई तरह के पुलाव व बिरियानी, तरह- तरह की डिशेज, बैंगन, प्याज, कटहल की सब्ज़ियाँ बनाते जो बहुत अपनी सी लगतीं। इसके अतिरिक्त कई तरह के सलाद, इडियप्पम, स्टिंग हॉपर (अप्पम ), कई तरह के डेजर्ट , पापड़ व सलाद होते थे और सबसे मजेदार लगता था फरवरी के मौसम में आम खाने का लुत्फ, जो कि देखने में भद्दे पर बहुत टेस्टी थे। इसीलिए भारतीय खाने को हमने जरा भी मिस नहीं किया।

इस समय वहाँ पर लाइट की काफी समस्या थी ।रोज तीन- चार घंटों के लिए लाइट चली जाती थी अत: जैनरेटर की व्यवस्था करनी पड़ी क्योंकि वहाँ का तापमान इस समय कुछ गर्म था।

श्रीलंका इकॉनॉमी क्राइसिस से जूझ रहा है। पहले 2004 में आई सुनामी के कहर से यहाँ काफ़ी नुक़सान हुआ और अब कोविड संकट से तो सारा विश्व ही पीड़ित है तो श्रीलंका भी आर्थिक-संकट से गुजर रहा है। वैसे भी वहाँ की अर्थ- व्यवस्था टूरिज़्म पर काफी आधारित है। जिस समय हम लोग वहाँ पर थे तब समुद्र-तट पर व सड़कों पर काफी विदेशी , अधिकांशत:  यूरोपियन दिखाई देते थे। वे लोग प्राय: स्कूटर या टुकटुक  पूरे दिन के लिए किराए पर लेकर सारे दिन इधर से उधर  घूमते रहते थे। परन्तु 24 फरवरी को रूस- यूक्रेन का युद्ध शुरु होते ही अचानक यूरोपियन टूरिस्ट की संख्या प्रतिदिन घटने लगी।

पहली नजर में श्रीलंका के निवासी प्राय: सीधे- सादे ही लगे। वहाँ आम बोलचाल की भाषा में अंग्रेजी, तमिल व सिंघली भाषा का प्रयोग किया जाता है।बातचीत से पता लगा कि वहाँ क़ानून व्यवस्था भी चुस्त- दुरुस्त है और महिलाओं के प्रति होने वाले  अपराधों की संख्या भी काफी कम है।

हमारे आवास के पास ही "सी टर्टल फार्म एन्ड हैचरी, हबराडुआ “ एक संरक्षण केन्द्र था। जिसका उद्देश्य कछुओं को संरक्षित करना है, जो 1986 में स्थापित किया गया था।यहाँ पर अब तक हजारों समुद्री कछुओं को बचाया गया है और जख्मी कछुओं की देखरेख की गई है।श्रीलंका एक ऐसी जगह है जो समुद्री कछुओं के लिए काफी अनुकूल है। 

कई कछुए समुद्र से बाहर निकल कर तट की रेत पर घोंसला खोद कर  उसमें अंडे देकर , उनको पुन: रेत से ढंक कर वापिस समुद्र में लौट जाते हैं, जिनमें से कई नष्ट हो जाते हैं। कुछ को कुत्ते या समुद्री जीव या इंसान  खा जाते हैं, जिसके कारण बहुत मात्रा में अंडे देने पर भी मात्र कुछ ही कछुए सर्वाइव कर पाते हैं । श्रीलंका में कई हैचरी हैं जो उनके संरक्षण का काम करती हैं। हैचरी में काम करने वाले व्यक्ति समुद्र के किनारे से उन अंडों को लाकर केज में रखी रेत में दबा देते हैं और जब बच्चे निकलते हैं तो उनको पानी के टैंक में रख देते हैं।जब वे संभल जाते हैं तो उनको शाम के वक्त समुद्र में छोड़ दिया जाता है। कुछ इच्छुक लोग पैसे देकर अपने हाथों से बहुत खुशी-खुशी उनको समुद्र में छोड़ते  हैं। इसके अतिरिक्त मछली के लिए डाले गए जाल में उलझ कर तथा अन्य कारणों से भी जो कछुए जख्मी हो जाते हैं और जो कछुए इन कार्यकर्ताओं को उपलब्ध हो जाते हैं तो उनको लाकर भी हैचरी में रख कर उनका इलाज व पालन-पोषण किया जाता है ।हमने देखा  एक कछुए का एक पैर कटा हुआ था व एक केज में वे कछुए थे जो प्लास्टिक खा गए थे अत: वे पानी में नीचे नहीं जा पा रहे  थे ऊपर ही तैर रहे थे, वे बहुत कष्ट में थे , उनका इलाज किया जा रहा था। कछुओं के संरक्षण के लिए यह एक सराहनीय प्रयास है।

वहाँ पर बन्दर अलग तरह के दिखाई देते हैं, कुछ- कुछ लंगूर जैसे।उनके कान चपटे, काले तथा पूँछ बहुत लम्बी होती है।

18वीं सदी में डच लोग यहाँ पर रहे थे। आज भी पुर्तगाली और डच लोगों द्वारा बनाया किला सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है जिसे विश्व धरोहर घोषित किया गया है। हम लोग भी " गाले फोर्ट “ देखने गए, जिस पर पुर्तगाली, डच एवम् ब्रिटिश स्थापत्य का प्रभाव स्पष्ट  दिखाई दिया।फोर्ट में बने लाइट हाउस, घंटाघर आदि भी देखे।किले की चौड़ी दीवार से समुद्र देखने का अपना ही आनन्द  था। गाले किला के अन्दर की गलियों की भूल भुलैया आश्चर्यचकित व आल्हादित कर  रही थीं। वर्तमान समय में यहां पर रेस्टोरेन्ट , कपड़े, आभूषण, स्मारिका की खूबसूरत दूकानों से भरा हुआ है जो कि वहाँ आने वाले पर्यटकों को विशेष आकर्षित करता है।

गाले में विशेष रूप से मिरीसा  बीच, उनावातुना  बीच , विजया बीच अपनी विविधतापूर्ण सुन्दरता के कारण पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहते हैं। उनावातुना बीच अपनी सफ़ेद रेत के लिए प्रसिद्ध हैं। इस शांति प्रिय स्थान पर पिकनिक मनाने के लिए भी पर्यटक आते हैं। इसके अलावा इस तट पर रंगीन मछली और कछुए देखने को मिलते हैं हम लोग प्राय: शाम को किसी न किसी बीच पर कुछ घन्टे बिताते और सूर्यास्त देख कर वापिस लौटते। समुद्र के किनारे खड़े होकर सूर्यास्त- दर्शन का अपना अलग ही आनन्द है। समुद्र के पास जाकर कभी तो मेरा मन बहुत वाचाल हो जाता है, भावों व विचारों की अनवरत धाराएं प्रवाहित होने लगती हैं और कभी मन एकदम मौन होकर  शान्त व विचारशून्य हो डुबकी लगा जाता है… कभी समुद्र की विशालता के आगे अपनी क्षुद्रता का भान होता है तो कभी लगता है जैसे समुद्र मेरे ही अन्दर प्रवाहित हो रहा है…समुद्र मुझे एक गहन आध्यात्मिक सा आभास व सुकून देता है।पैरों को छूकर लौट जाती लहरें तन-मन का ताप हर स्फूर्ति से भर जाती हैं।

एक दिन सुबह- सुबह हम लोग "हैंडुनुगोडा टी स्टेट” घूमने के लिए  गए। श्रीलंका के ऐतिहासिक गाले किले और समुद्रतटीय शहर मिरिसा के बीच हैंडुनुगोडा है, जो एक चाय बागान और संग्रहालय है जो अपनी वर्जिन व्हाइट टी  के लिए प्रसिद्ध है।जिसे विश्व की सर्वश्रेष्ठ चाय माना जाता है। 200 एकड़ में फैले इस बागान में रबर, दालचीनी और नारियल के पेड़ भी उगाये जाते हैं।इस चाय के बागान एवम् स्पाइस- गार्डन में हम गाइड के साथ घूमे।तथा तरह- तरह की टी जैसे-व्हाइट टी , ग्रीन टी, ब्लैक टी, सिनामोन टी, जिंजर टी आदि को केक के पीस के साथ टेस्ट किया। वर्जिन व्हाइट टी का रेट तो लगभग चाँदी की कीमत के बराबर था। माना जाता है कि व्हाइट टी स्वास्थ्यप्रद प्रकार की चाय में से एक है, क्योंकि यह एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है तथा कैफीन की मात्रा काफी कम होती है। निर्माण व पैकिंग की प्रक्रिया के समय इसके टेस्ट की नजाकत व शुद्धता को बनाए रखने के लिए मानव हाथों से अछूता रखा जाता है ।

लगभग दो हफ्ते श्रीलंका में रह कर हम लोगों ने वापसी के लिए इस बार समुद्र के साथ- साथ चलने वाले दूसरे मार्ग को चुना। वह मार्ग भी बहुत ही सुन्दर था। रास्ते में रुक- रुक कर हम हिक्काडुआ बीच, बैंटोटा बीच ,मास्क- म्यूजियम, देखते और फ़ोटोग्राफ़ी करते हुए वापिस कोलम्बो पहुँचे। लन्च के बाद कुछ देर आराम किया फिर घूमने निकल गए। हम कहीं भी घूमने जाएं जब तक वहाँ के म्यूज़ियम व आर्ट- गैलरी न घूमें हमारी यात्रा अधूरी रहती है तो कोलम्बो की भी एक-दो आर्ट- गैलरी देखीं। टैक्सी ड्राइवर ने हमको एक जगह चाय पीने के लिए विशेष आग्रह किया। वाकई दालचीनी व इलायची डली मीठी सी, बहुत ही स्वादिष्ट गर्म चाय का एक बड़ा सा कप पीकर सारी थकान दूर हो गई।  

बेशक ये कोई तीर्थ- यात्रा नहीं थी परन्तु लंका- प्रवास के समय पूरे समय मन में और ध्यान में सीता माँ , श्रीराम , लक्ष्मण, व हनुमान जी विराजमान थे।  उनका स्मरण निरन्तर बना रहा। आँखों के समक्ष लहराते समुद्र की लहरें थीं तो मन में सुकून और आस्था की धारा अनवरत प्रवाहित हो रही थी। आँखें बन्द कर, हाथ जोड़ प्रणाम कर, श्रीलंका का समुद्र, बीचेज व हरियाली व बच्चों के साथ बिताए हुए सुखद पलों को मन में बसाए हुए दूसरी सुबह वापसी के लिए हम एयरपोर्ट के लिए निकल














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जरा सोचिए

     अरे यार,मेरी मेड छुट्टी बहुत करती है क्या बताएं , कामचोर है मक्कार है हर समय उधार मांगती रहती है कामवालों के नखरे बहुत हैं  पूरी हीरोइन...