22 मई-
दो तीन दिन पहले घर के बाहर किसी चिड़िया के कर्कश आवाज में चिंचियाने की आवाज सुन कर जाली के दरवाजे से बाहर झाँका तो देखा एक चिड़िया ऊपर टंगे गमले में बैठी सब पर गुसिया रही है ।गीता झाडू लगाने गई थी तो उसे डाँट पिला रही थी। गीता ने ग़ुस्से से कहा
-बड़ी बत्तमीज होती है येचिड़िया…अटैक भी कर देती है और देखो पौधों के बीच घोंसला बना रही है, अब ये अंडे भी देगी, तो घरसे निकलने पर मुसीबत करेगी, इसका घोंसला उठा कर कहीं और रख दें ? हमने कहा -
-खबरदार हाथ भी मत लगाना दूर हटो सब , पास मत जाना।
हमें लगा कि बुलबुल है तो रश्मि रवीजा से फोटो भेज कर कन्फर्म किया उन्होंने भी कहा कि बुलबुल ही है और बहुत मीठा गाती है हमने कहा कि ये तो बहुत कर्कश आवाज में चीख रही है तो उन्होंने कहा कि अभी गुस्से में होगी।
खैर तो अब उसने पौधों के बीच बड़ा सुघड़, सुन्दर घोंसला बना लिया है , जिसे किसी लम्बे डोरीनुमा तिनके से स्टैंड के साथ बाँध कर आँधी से बचाने का भी इंतजाम कर दिया है , तीन अंडे दे दिए हैं उसमें। अब डाँट-डपट तो नहीं कर रही । वो ड्यूटी हमने संभाल ली है तो माता निश्चिंत हैं और उसने पहले ही हड़का दिया कि दूर रहना सब, वर्ना मुँह नोच लूँगी। हम सेवा में तत्पर हैं सबको कह दिया हैकि घूम कर पीछे से किचिन से आओ- जाओ सामने से नहीं ।
सुना था कि नर बुलबुल ऐसे में मादा बुलबुल के खाने की व्यवस्था करता है पर जरा नहीं झाँकता वो नालायक। हम ही जाली के दरवाजे के पीछे से हर घंटे ताका-झाँकी करते रहते हैं । पापा बुलबुल तो बस एक दिन दिखा था सामने तार पर बैठा हीरोपन्ती करता , फिर नजर नहीं आया। हुँह…ये मर्द भी…बेचारी बीच- बीच में उड़ कर दाना- पानी खाने जाती है। तभी हम लोग पौधों में जल्दी से पानी दे देते हैं।हमने दियों में सामने ही बाजरा और पानी रखा, ख़रबूज़े का टुकड़ा व ब्रैड भी…पर देखती तक नहीं उस तरफ़ …जाने क्या वहम है कि हमने जाने क्या मिला दिया होगा…हमारी नेकनीयती पर ही विश्वास नहीं। घर में जच्चा के होने जैसी फीलिंग है ..खैर आतुर प्रतीक्षा है बच्चों के आने की ।
23 मई -आज तेज हवा के साथ बहुत तेज बारिश हो रही है रात से…माता बुलबुल अंडों पर से हिल भी नहीं रही…बेचारी भूखी प्यासी होगी सेचकर हमने बूँदी, सेव की नमकीन, कुछ बीज व पानी रख दिया है सामने, परन्तु वो उनको छू भी नहीं रही…मन आकुल है …प्रभु कुछ देर को बारिश रोक दो🙏
22 मई को ये पोस्ट लिखी थी और अब तीन नन्हें मेहमान बुलबुले नीड़ में आ गए हैं । आजकल मुग्ध हो सारे दिन सुनती रहती हूँ-" रानी तेरो चिरजीवौ गोपाल….!”
आज 9 जून उनको आए लगभग नौ- दस दिन हो गए हैं। उनकी चूँ- चूँ, चीं चीँ सुनने सारा दिन दरवाजे कीजाली से आँख लगा कर बार- बार देखते रहते हैं।
29th को देखा कि नर बुलबुल भी माता बुलबुल के साथ डटा है और घोंसले के चक्कर लगा रहा है ।मैं समझ गई कि नन्हे मेहमान के आगमन की सूचना पाकर ही पापा बुलबुल तशरीफ़ लाए हैं । बस जीआते ही जो ज़िम्मेदारी निभाई कि सबका बाहर निकलना ही मुश्किल हो गया। दोनों मियाँ बीबी ड्यूटी पर मुस्तैद…एक दाना लेने जाए तो एक बाहर कार पर , तार पर या हैंगिंग गमलों पर बैठ कर निगरानी करे। हमने मौका देख कर थोड़ा सा दरवाजा खोल कर हाथ ऊपर करके फोटो ले तो ली पर तब तकएक ने आकर दरवाजे पर झपट्टा मारा , हमने जल्दी से दरवाजा बन्द कर लिया।
हम 1st जून को पाँच- छह दिन को बाहर गए तो गीता को कह गए थे कि -ध्यान रखना , इधर से मत निकलना तुम लोग । बिल्ली का ख़ास ध्यान रखना और हो सके तो तीन दिन बाद इनकी फोटो भेजना सावधानी से। बस यहीं गड़बड़ हो गई। एक दिन गीता फोटो खीँचने की कोशिश कर रही थी तोउस पर झपट्टा मारा…वो अन्दर जल्दी से भागी तो उसके पीछे घर में घुस गई । बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला। जब बाहर थे तब फोन पर खबर लेते रहते थे। पता चला दोनों ने सबका बाहर निकलना ही मुश्किल कर दिया है। देखते ही झपट्टा मारते हैं, तो रसोई या ड्रॉइंग रूम से निकलना पड़ता है। एकदिन माली मौका देखकर पेड़ों में पानी दे रहा था तो उस पर झपट्टा मारा, उसने पानी से भगाने कीकोशिश की तो जमीन पर लोट- लोट कर फड़फड़ाने लगी। जब ये बात हमें पता चला तो बहुत दुख हुआ और फिर कहा कि कोशिश करो कि उनको तकलीफ़ न हो।
वापिस आए तो गाड़ी से सामान निकालने की हलचल से दोनों त्रस्त होकर उड़ उड़ कर शोर मचानेलगीं। हमने ड्रॉइंगरूम से सामान अन्दर पहुँचवाया।
अब बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं और सारे दिन दाने के लिए चोंच खोलकर उचक- उचक कर चूँ चूँ करते रहते हैं । मम्मी बुलबुल भाग- भाग कर दाना- पानी लाती रहती है। हमने काफी खाने का सामानव पानी सामने रखा पर उसने जरा भी कुछ नहीं छुआ।
बिल्ली से डर लगता है । बस जल्दी से बच्चे बड़े होकर उड़ जाएं तो हम भी कर्फ़्यू मुक्त हों। पति परेशान होकर बोले
- हमसे पहले ही नीरज जी ने बताया था कि ये बुलबुल चिड़िया बहुत बत्तमीज और झगड़ालू होती है , गल्ती की जब शुरु किया था तब ही घोंसला नहीं बनने देना था। हमने बुरा मान कर कहा
-ये बत्तमीज होना नहीं है केयरिंग होना होता है। माँ है वो उसके दिल से पूछो !
- इससे पहले भी इतनी चिड़ियों ने घोंसले बनाए, बच्चे होकर उड़े पर इतना परेशान किसी ने नहीं किया! उन्होंने कहा, तो हमने कहा कि-
- तुम हो रहे होंगे परेशान हमें तो बहुत आनन्द आ रहा है 😂।
तो ये है बुलबल और बुलबुलों का अब तक का तब्सरा। एक दो फोटो खींच पाए हैं बाकी जब उड़नासीखेंगे तब कोशिश करेंगे…तब तक प्रतीक्षा करिए आप भी और हम भी😊
आज 11 जून बुलबुल परिवार हमारा घर कर्फ़्यू मुक्त करके विदा हो चुका है ।इंसान के बच्चे कोकितना ज्यादा वक्त लगता है अपने पैरों पर खड़े होने में , जबकि परिंदे कैसी जल्दी बेधड़क आकाश नापने निकल पड़ते हैं।
9th जून को ही दो नन्हों को बुलबुल ने घोंसले से निकाला और हमारे लॉन में उड़ना सिखाने लगी।सामने लगे बड़े से Blue Jacaranda tree पर भी फुदकते दिख जाते । तीसरा जो दुनियाँ में अगलेदिन आया था वो अकेला नन्हें पंख फड़फड़ाता घोंसले में शोर मचाता रहता और दोनों बडों की ट्रेनिंग चालू रहती। शाम तक हमने घोंसला खाली देखा और बुलबुल मम्मी गमले के पास ले जाकर चीं-चीँ करके झुँझला कर छुटकू को जोर से डाँट रही थी और वो गमलों में दुबके जा रहा था। हम कभी बैडरूम, कभी ड्रॉइंग रूम की खिड़कियों से तो कभी बाहर के दरवाजे की जाली से बार- बार ताकझाँक करते रहे। सुबह लॉन के कोने में चाय और पेपर लेकर बैठ गए तो वो चिंचियाती हुई चेहरे पर झपटी , हमने हाथ से चेहरा बचाया और अन्दर आकर बैठ गए …तब हमें पता नहीं था कि हमारा लॉन अबपूर्णत: उनका ट्रेनिंग सेन्टर बन चुका है ।
तीनों नन्हें बदमाश बार- बार गमलों के पीछे दुबक जाते और उनके पापा मम्मी उनको डाँट लगा कर निकाल कर, वहाँ से खदेड़ कर सामने पेड़ पर आने को प्रोत्साहित करते। फिर पेड़ पर ही उनको चोंच से ही बुलबुल खाना खिलाती रहती। वे खुद भी पेड़ पर कुछ चोंच चलाते दिखे। हमें लगा हफ्ता भर तो लगेगा ही अभी ठीक से उड़ने में ।
अगले दिन सुबह उठते ही आंखें मलते हम सीधे लॉन में जाकर बुलबुलों को ढूँढने लगे पर उनका पूरा परिवार ही गायब मिला। हमने झाड़ू लगा रहे मोहन से पूछा -
-बुलबुल के बच्चे दिखे क्या ?
- उनको बिल्ली खा गई ये देखो ये गमले भी गिरे पड़े हैं उसने सक्यूलेन्ट्स के छोटे गिरे पड़े कुछ पॉट्स की तरफ़ झाड़ू लगाते- लगाते लापरवाही से इशारा किया।
-क्या…? हमें जोर का धक्का लगा और अन्दर अपने बैड पर वापिस जाकर रोने लगे।बहुत दुख हो रहा था। सारे दिन धूप में जा- जाकर भूखे- प्यासे चारों तरफ़ पेड़ों पर ढूँढते रहे पर कोई नजर नहीं आया।व्रत था तो सिर दर्द शुरु हो गया। शाम तक हमको अवसाद में देख कर हस्बैंड ने कहा
-अरे बिल्ली खाती तो पंख तो होते वहाँ पर । तुम कैमरे में देख लो, पता चल जाएगा। ।
-अरे हाँ ये तो हमको सूझा ही नहीं, रात को देखते हैं। सच तो ये है कि हिम्मत नहीं हो रही थी जानेक्या देखने मिलेगा ? शाम को बुलबुल पापा या मम्मी में से कोई एक थोड़ी दूर पर बराबर वाले पेड़ केसामने तार पर बैठा नजर आया । थोड़ा सुरीला सा कूका भी एक दो बार। नर और मादा बुलबुल दोनोंएक से ही लगते हैं तो पहचानना मुश्किल होता है। जरूर पापा ही होगा ये उसकी ही अदा थी निगरानी करने की।बाकी ज़िम्मेदारी तो मम्मी बुलबुल निभाती थी। बहुत आँखें फाड़ कर देखा पर बच्चे कहीं भी नजर नहीं आए। घने पेड़ में उतनी दूर से दिखना मुश्किल भी था। रात को कैमरे को रिवाइन्ड करकेदेखा तो रात के एक बजे बाहर खड़ी गाड़ी पर छलांग लगा कर गली का काला कुत्ता चढ़ता नजर आयाऔर हमारे लॉन में छलांग लगा कर ठंडी घास पर बड़ी देर तक लोट लगाता रहा फिर थोड़ी देर बाद जैसे आया था वैसे ही छलांग लगा कर भाग गया और दो चार गमले भी गिरा गया…देख कर हैरानी हुई परन्तु सुकून भी मिला कि बिल्ली ने या उसने नहीं खाए हैं ।
सुबह से कई बार जाकर देख चुकी पर कोई नजर नहीं आ रहा। मोहन ने पूछा कि
- घोंसला हटा दें अब ?
- नहीं अभी रहने दो हफ्ते भर ! हमने कहा तो पर जानते हैं कि जितना मोह हमें उनके नीड़ से हो रहा है उनको उसका अब मोह जरा भी नहीं होगा। सच में पूरा आकाश नापने वाले कब तिनकों के मोह से बँधे? वो तो हम इंसान ही हैं जो मरते दम तक भी ईंट- पत्थरों की मोह- माया नहीं छोड़ पाते।
हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करती हूँ हे प्रभु आसमानी और जमीनी आपदाओं से बुलबुलों की रक्षाकरना
🙏🙏
- इति बुलबुल कथा सम्पन्नम् 😊
— उषा किरण
"सच में पूरा आकाश नापने वाले कब तिनकों के मोह से बँधे? वो तो हम इंसान ही हैं जो मरते दम तक भी ईंट- पत्थरों की मोह- माया नहीं छोड़ पाते। "
जवाब देंहटाएंकितनी अच्छी बात कही आपने,हम इंसान ही मोह-माया में बंधे होते हैं,बहुत ही प्यारी बुलबुल कथा सुनाई आपने। पक्षियों के साथ यूँ वक़्त गुजरना बड़ा ही सुखद लगता है,सादर नमन आपको
कामिनी जी हृदय से आभार 😊
हटाएंउषा दी, सच में हम इंसान ही मोह माया में ज्यादा फंसे हुए है। बहुत सुंदर बुलबुल कथा।
जवाब देंहटाएंज्योति जी हृदय से आभार😊
हटाएंबहुत सुन्दर बहुत रोचक
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरी रचना का चयन करने के लिए आपका बहुत आभार 🙏
हटाएंस्नेह से ओतप्रोत सुंदर आप बीती।
जवाब देंहटाएंबुलबुल के साथ गुजारे वो चंद दिवस।
हार्दिक आभार
हटाएं