ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 19 जून 2022

मेरे घर आना जिंदगी…( बुलबुल डायरी )


22 मई-

दो तीन दिन पहले घर के बाहर किसी चिड़िया के कर्कश आवाज में चिंचियाने की आवाज सुन कर जाली के दरवाजे से बाहर झाँका तो देखा एक चिड़िया ऊपर टंगे गमले में बैठी सब पर  गुसिया रही है गीता झाडू लगाने गई थी तो उसे डाँट पिला रही थी। गीता ने ग़ुस्से से कहा 

-बड़ी बत्तमीज होती है येचिड़ियाअटैक भी कर देती है और देखो पौधों के बीच घोंसला बना रही हैअब ये अंडे भी देगीतो घरसे निकलने पर मुसीबत करेगीइसका घोंसला उठा कर कहीं और रख दें ? हमने कहा -

-खबरदार हाथ भी मत लगाना दूर हटो सब , पास मत जाना। 

हमें लगा कि बुलबुल है तो रश्मि रवीजा से फोटो भेज कर कन्फर्म किया उन्होंने भी कहा कि बुलबुल ही है और बहुत मीठा गाती है हमने कहा कि ये तो बहुत कर्कश आवाज में चीख रही है तो उन्होंने कहा कि अभी गुस्से में होगी। 

खैर तो अब उसने पौधों के बीच बड़ा सुघड़सुन्दर घोंसला बना लिया है , जिसे किसी लम्बे डोरीनुमा तिनके से स्टैंड के साथ बाँध कर आँधी से बचाने का भी इंतजाम कर दिया है , तीन अंडे दे दिए हैं उसमें अब डाँट-डपट तो नहीं कर रही  वो ड्यूटी हमने संभाल ली है तो माता निश्चिंत हैं और उसने पहले ही हड़का दिया कि दूर रहना सबवर्ना मुँह नोच लूँगी। हम सेवा में तत्पर हैं सबको कह दिया हैकि घूम कर पीछे से किचिन से आओजाओ सामने से नहीं  

सुना था कि नर बुलबुल ऐसे में मादा बुलबुल के खाने की व्यवस्था करता है पर जरा नहीं झाँकता वो नालायक। हम ही जाली के दरवाजे के पीछे से हर घंटे ताका-झाँकी  करते रहते हैं  पापा बुलबुल तो बस एक दिन दिखा था सामने तार पर बैठा हीरोपन्ती करता , फिर नजर नहीं आया। हुँहये मर्द भीबेचारी बीचबीच में उड़ कर दानापानी खाने जाती है। तभी हम लोग पौधों में जल्दी से पानी दे देते हैं।हमने दियों में सामने ही बाजरा और पानी रखाख़रबूज़े का टुकड़ा  ब्रैड भीपर देखती तक नहीं उस तरफ़ जाने क्या वहम है कि हमने जाने क्या मिला दिया होगाहमारी नेकनीयती पर ही विश्वास नहीं। घर में जच्चा के होने जैसी फीलिंग है ..खैर आतुर प्रतीक्षा है बच्चों के आने की 

23 मई -आज तेज हवा के साथ बहुत तेज बारिश हो रही है रात सेमाता बुलबुल अंडों पर से हिल भी नहीं रहीबेचारी भूखी प्यासी होगी सेचकर हमने बूँदीसेव की नमकीनकुछ बीज  पानी रख दिया है सामनेपरन्तु वो उनको छू भी नहीं रहीमन आकुल है …प्रभु कुछ देर को बारिश रोक दो🙏


22 मई को ये पोस्ट लिखी थी और अब तीन नन्हें मेहमान बुलबुले नीड़ में  गए हैं  आजकल मुग्ध हो सारे दिन सुनती रहती हूँ-" रानी तेरो चिरजीवौ गोपाल….!”

आज 9 जून उनको आए लगभग नौदस दिन हो गए हैं। उनकी चूँचूँचीं चीँ सुनने सारा दिन दरवाजे कीजाली से आँख लगा कर बारबार देखते रहते हैं।

29th को देखा कि नर बुलबुल भी माता बुलबुल के साथ डटा है और घोंसले के चक्कर लगा रहा है मैं समझ गई कि नन्हे मेहमान के आगमन की सूचना पाकर ही पापा बुलबुल तशरीफ़ लाए हैं  बस जीआते ही जो ज़िम्मेदारी निभाई कि सबका बाहर निकलना ही मुश्किल हो गया। दोनों मियाँ बीबी ड्यूटी पर मुस्तैदएक दाना लेने जाए तो एक बाहर कार पर , तार पर या हैंगिंग गमलों पर बैठ कर निगरानी करे हमने मौका देख कर थोड़ा सा दरवाजा खोल कर हाथ ऊपर करके फोटो ले तो ली पर तब तकएक ने आकर दरवाजे पर झपट्टा मारा , हमने जल्दी से दरवाजा बन्द कर लिया। 

हम 1st जून को पाँचछह दिन को बाहर गए तो गीता को कह गए थे कि -ध्यान रखना , इधर से मत निकलना तुम लोग  बिल्ली का ख़ास ध्यान रखना और हो सके तो तीन दिन बाद इनकी फोटो भेजना सावधानी से। बस यहीं गड़बड़ हो गई। एक दिन गीता फोटो खीँचने की कोशिश कर रही थी तोउस पर झपट्टा मारावो अन्दर जल्दी से भागी तो उसके पीछे घर में घुस गई  बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला। जब बाहर थे तब फोन पर खबर लेते रहते थे। पता चला दोनों ने सबका बाहर निकलना ही मुश्किल  कर दिया है। देखते ही झपट्टा मारते हैंतो रसोई या ड्रॉइंग रूम से निकलना पड़ता है। एकदिन माली मौका देखकर पेड़ों में पानी दे रहा था तो उस पर झपट्टा माराउसने पानी से भगाने कीकोशिश की तो जमीन पर लोटलोट कर फड़फड़ाने लगी। जब ये बात हमें पता चला तो बहुत दुख हुआ और फिर कहा कि कोशिश करो कि उनको तकलीफ़  हो।

वापिस आए तो गाड़ी से सामान निकालने की हलचल से दोनों त्रस्त होकर उड़ उड़ कर शोर मचानेलगीं। हमने ड्रॉइंगरूम से सामान अन्दर पहुँचवाया। 

अब बच्चे कुछ बड़े हो गए हैं और सारे दिन दाने के लिए चोंच खोलकर उचकउचक कर चूँ चूँ करते रहते हैं  मम्मी बुलबुल भागभाग कर दानापानी लाती रहती है। हमने काफी खाने का सामानव पानी  सामने रखा पर उसने जरा भी कुछ नहीं छुआ।

बिल्ली से डर लगता है  बस जल्दी से बच्चे बड़े होकर  उड़ जाएं तो हम भी कर्फ़्यू मुक्त हों। पति परेशान  होकर बोले 

हमसे पहले ही नीरज जी ने बताया था कि ये बुलबुल चिड़िया बहुत बत्तमीज और झगड़ालू होती है , गल्ती की जब शुरु किया था तब ही घोंसला नहीं बनने देना था। हमने बुरा मान कर कहा 

-ये बत्तमीज होना नहीं है केयरिंग होना होता है। माँ है वो उसके दिल से पूछो !

इससे पहले भी इतनी चिड़ियों ने घोंसले बनाएबच्चे होकर उड़े पर इतना परेशान किसी ने नहीं कियाउन्होंने कहातो हमने कहा कि-

तुम हो रहे होंगे परेशान हमें तो बहुत आनन्द  रहा है 😂

तो ये है बुलबल और बुलबुलों का अब तक का तब्सरा। एक दो फोटो खींच पाए हैं बाकी जब उड़नासीखेंगे तब कोशिश करेंगेतब तक प्रतीक्षा करिए आप भी और हम भी😊


 आज 11 जून बुलबुल परिवार हमारा घर कर्फ़्यू मुक्त करके विदा हो चुका है ।इंसान के बच्चे कोकितना ज्यादा वक्त लगता है अपने पैरों पर खड़े होने में , जबकि परिंदे कैसी जल्दी बेधड़क आकाश नापने  निकल पड़ते हैं। 

9th जून को ही दो नन्हों को बुलबुल ने घोंसले से निकाला और हमारे लॉन में उड़ना सिखाने लगी।सामने लगे बड़े से Blue Jacaranda tree पर भी फुदकते दिख जाते  तीसरा जो दुनियाँ में अगलेदिन आया था वो अकेला नन्हें पंख फड़फड़ाता घोंसले में शोर मचाता रहता और दोनों बडों की ट्रेनिंग चालू रहती। शाम तक हमने घोंसला खाली देखा और बुलबुल मम्मी गमले के पास ले जाकर चीं-चीँ करके झुँझला कर छुटकू को जोर से डाँट रही थी और वो गमलों में दुबके जा रहा था। हम कभी बैडरूमकभी ड्रॉइंग रूम की खिड़कियों से तो कभी बाहर के दरवाजे की जाली से बारबार ताकझाँक करते रहे। सुबह लॉन के कोने में चाय और पेपर लेकर बैठ गए तो वो चिंचियाती हुई चेहरे पर झपटी , हमने हाथ से  चेहरा बचाया और अन्दर आकर बैठ गए …तब हमें पता नहीं था कि हमारा लॉन अबपूर्णतउनका ट्रेनिंग सेन्टर बन चुका है 

तीनों नन्हें बदमाश बारबार गमलों के पीछे दुबक जाते और उनके पापा मम्मी उनको डाँट लगा कर निकाल  करवहाँ से खदेड़ कर सामने पेड़ पर आने को प्रोत्साहित करते। फिर पेड़ पर ही उनको चोंच से ही बुलबुल खाना खिलाती रहती। वे खुद भी पेड़ पर कुछ चोंच चलाते दिखे। हमें लगा हफ्ता भर तो लगेगा ही अभी ठीक से उड़ने में 

अगले दिन सुबह उठते ही आंखें मलते हम सीधे लॉन में जाकर बुलबुलों को ढूँढने लगे पर उनका पूरा परिवार  ही गायब मिला। हमने झाड़ू लगा रहे मोहन से पूछा -

-बुलबुल के बच्चे दिखे क्या ?

उनको बिल्ली खा गई ये देखो ये गमले भी गिरे पड़े हैं उसने सक्यूलेन्ट्स के छोटे गिरे पड़े कुछ पॉट्स की तरफ़ झाड़ू लगातेलगाते लापरवाही से इशारा किया।

-क्या…? हमें जोर का धक्का लगा और अन्दर अपने बैड पर वापिस जाकर रोने लगे।बहुत दुख हो रहा था। सारे दिन धूप में जाजाकर भूखेप्यासे चारों तरफ़ पेड़ों पर ढूँढते रहे पर कोई नजर नहीं आया।व्रत था तो सिर दर्द शुरु हो गया। शाम तक हमको अवसाद में देख कर हस्बैंड ने कहा 

-अरे बिल्ली खाती तो पंख तो होते वहाँ पर  तुम कैमरे में देख लोपता चल जाएगा।  

-अरे हाँ ये तो हमको सूझा ही नहींरात  को देखते हैं। सच तो ये है कि हिम्मत नहीं हो रही थी जानेक्या देखने मिलेगा ? शाम को बुलबुल पापा या मम्मी में से कोई एक थोड़ी दूर पर बराबर वाले पेड़ केसामने तार पर बैठा नजर आया । थोड़ा सुरीला सा कूका भी एक दो बार। नर और मादा बुलबुल दोनोंएक से ही लगते हैं तो पहचानना मुश्किल होता है। जरूर पापा ही होगा ये उसकी ही अदा  थी निगरानी करने की।बाकी ज़िम्मेदारी तो  मम्मी बुलबुल निभाती थी। बहुत आँखें फाड़ कर देखा पर बच्चे कहीं भी नजर नहीं आए। घने पेड़ में उतनी दूर से दिखना मुश्किल भी था। रात को कैमरे को रिवाइन्ड करकेदेखा तो रात के एक बजे बाहर खड़ी गाड़ी पर छलांग लगा कर गली का काला कुत्ता चढ़ता नजर आयाऔर हमारे लॉन में छलांग लगा कर ठंडी घास पर बड़ी देर तक लोट लगाता रहा फिर थोड़ी देर बाद जैसे आया था वैसे ही छलांग लगा कर भाग गया और दो चार गमले भी गिरा गयादेख कर हैरानी हुई परन्तु सुकून भी  मिला कि बिल्ली ने या उसने नहीं खाए हैं 

सुबह से कई बार जाकर  देख चुकी पर कोई नजर नहीं  रहा। मोहन ने पूछा कि

घोंसला  हटा दें अब ?

नहीं अभी रहने दो हफ्ते भर ! हमने कहा तो पर जानते हैं कि जितना मोह हमें उनके नीड़ से हो रहा है उनको उसका अब मोह जरा भी नहीं होगा। सच में पूरा आकाश नापने वाले कब तिनकों के मोह से बँधेवो तो हम इंसान ही हैं जो मरते दम तक भी ईंटपत्थरों की मोहमाया नहीं छोड़ पाते। 

हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करती हूँ हे प्रभु आसमानी और जमीनी आपदाओं से बुलबुलों की रक्षाकरना 

🙏🙏

इति बुलबुल कथा सम्पन्नम् 😊

                 — उषा किरण 






10 टिप्‍पणियां:

  1. "सच में पूरा आकाश नापने वाले कब तिनकों के मोह से बँधे? वो तो हम इंसान ही हैं जो मरते दम तक भी ईंट- पत्थरों की मोह- माया नहीं छोड़ पाते। "
    कितनी अच्छी बात कही आपने,हम इंसान ही मोह-माया में बंधे होते हैं,बहुत ही प्यारी बुलबुल कथा सुनाई आपने। पक्षियों के साथ यूँ वक़्त गुजरना बड़ा ही सुखद लगता है,सादर नमन आपको

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  2. उषा दी, सच में हम इंसान ही मोह माया में ज्यादा फंसे हुए है। बहुत सुंदर बुलबुल कथा।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
    'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी रचना का चयन करने के लिए आपका बहुत आभार 🙏

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  4. स्नेह से ओतप्रोत सुंदर आप बीती।
    बुलबुल के साथ गुजारे वो चंद दिवस।

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