बेटियों का आसमान होते हैं पिता
और जमीन भी
उनका मान
और सम्मान भी
पिता की हथेलियों पर
नन्हा पग रखतीं
माँ की उंगली थाम जब
रखती है पहला कदम
तो उस एक पग में
जैसे नाप लेना चाहती है
सारा संसार
जिंदगी की लम्बी डगर में
बेटियों को
कहाँ नसीब होती है
ताउम्र पिता की छाँव
पर चाहें जहाँ भी रहें
उनका सिर टिका रहता है
पिता के ही सीने पर
पिता के आँगन की
एक मुट्ठी धूप-छाँव ले जाकर
रोपती हैं फिर बड़े चाव से
नए आँगन में
बेला, गुलाब, चंपा
अमलतास और गुलमोहर
संग बिखेरती हैं
मीठा सा मधुमास
सावन में नीम पर झूला डाल
बढा़ती हैं लम्बी पींगें
और ताउम्र गाती रहती हैं
"सावन आया कि अम्मा मेरे बाबुल को भेजो री ...”!!!
—उषा किरण
#हर दिवस पितृदिवस 🙏
#फोटो: गूगल से साभार
(रीपोस्ट)
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 01 जुलाई 2022 को 'भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था' (चर्चा अंक 4477) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
धन्यवाद रवीन्द्र जी !
हटाएंपिता की हथेलियों पर
जवाब देंहटाएंनन्हा पग रखतीं
माँ की उंगली थाम जब
रखती है पहला कदम
तो उस एक पग में
जैसे नाप लेना चाहती है
सारा संसार
दिल को छूती बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब अभिव्यक्तिवाह!!!
सुधा जी हार्दिक आभार
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंसच कहा उषा जी आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जितेन्द्र जी !
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