ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 30 जून 2022

आसमान होते हैं पिता

 



बेटियों का आसमान होते हैं पिता 

और जमीन भी 

उनका मान 

और सम्मान भी

पिता की हथेलियों पर 

नन्हा पग रखतीं

माँ की उंगली थाम जब 

रखती है पहला कदम

तो उस एक पग में 

जैसे नाप लेना चाहती है 

सारा संसार


जिंदगी की लम्बी डगर में

बेटियों को 

कहाँ नसीब होती है 

ताउम्र पिता की छाँव 

पर चाहें जहाँ भी रहें 

उनका सिर टिका रहता है

पिता के ही सीने पर 


पिता के आँगन की 

एक मुट्ठी धूप-छाँव ले जाकर

रोपती हैं फिर बड़े चाव से 

नए आँगन में 

बेला, गुलाब, चंपा

अमलतास और गुलमोहर

संग बिखेरती हैं 

मीठा सा मधुमास 


सावन में नीम पर झूला डाल

बढा़ती हैं लम्बी पींगें

और ताउम्र गाती रहती हैं


"सावन आया कि अम्मा मेरे बाबुल को भेजो री ...”!!!

              —उषा किरण


#हर दिवस पितृदिवस 🙏

#फोटो: गूगल से साभार 

(रीपोस्ट)

8 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 01 जुलाई 2022 को 'भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था' (चर्चा अंक 4477) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    जवाब देंहटाएं
  2. पिता की हथेलियों पर

    नन्हा पग रखतीं

    माँ की उंगली थाम जब

    रखती है पहला कदम

    तो उस एक पग में

    जैसे नाप लेना चाहती है

    सारा संसार
    दिल को छूती बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब अभिव्यक्तिवाह!!!

    जवाब देंहटाएं

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