ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
शनिवार, 27 मार्च 2021
साँप-सीढ़ी
मंगलवार, 23 मार्च 2021
अब बारी तुम्हारी
सुनो बेटों-
माना कि वे कुछ आक्रामक हैं
उग्र हैं ...आन्दोलित हैं..
तेवर भी कुछ भारी हैं
नहीं सुनतीं किसी की भी
बस सुनतीं अपने मन की हैं...!
स्वयम् चुनतीं अपनी ही धरती
आकाश, चाँद-सूरज,पथ भी
नहीं स्वीकार तुम्हें पूजना
तो कहाँ मंजूर देवी कह कर
खुद का पूजा जाना भी ?
उन्मुक्त हो खिलखिलाती
सजती हैं...गाती हैं
उड़ती हैं मनमाफिक पंख लगा
स्वच्छन्द हो आज मुस्काती हैं !
पितृसत्तात्मक सोच को यदि
जब लगे चोट कभी तुम्हारी
जैसे पीढ़ियों से चुप हो
बेटियों ने सहा सदा ही
वैसे ही तुम भी अब
हँस कर सब सह जाना...!
यदि कभी ज्यादती हो
और हम अनदेखा कर जाएं
जैसे बचपन में
तुम्हें मार पड़ी बहन से
बिलबिला कर तब तुमने
मुड़ करके हमको देखा
और प्रतिशोध लेना चाहा
"गलत बात ...
लडकियों पर हाथ नहीं उठाते !“
हमने हमेशा तुमको रोका
तुम रुआँसे हो कहते
"उसको कोई क्यों नहीं कुछ कहता ...!”
उनके पस्त हौसलों को
पंख देने की
ये हमारी तैयारी थी
कि बहन तुम्हारी कभी न हारे
सिर न झुके किसी के आगे
तोड़ दे वो हाथ
जो हाथ बढ़े उसके आगे...!
सदियों से दबी नानी ने मेरी
खिड़की खोली माँ के लिए
और हमारी माँओं ने
सौ तोहमत झेलीं हमारे लिए
अब एक कदम आगे बढ़ कर
साँकल हमको खोलनी हैं !
सदियों पुरानी सीखों को
वे क्यूँ और सुनें भला...कि-
दबो...सबकी सुनो
झुको...बस झुकती ही रहो
शर्म ही औरत का जेवर
सहना ही औरत का गहना !
पति ही परमेश्वर तुम्हारा
बेशक कितना भी
व्यभिचार, अत्याचार सहो
नोची खसोटी जाओ
एसिड से नहलाई जाओ
पर कभी जुबान मत खोलना
कि...औरत का पाप फूल
और मर्द का पत्थर सा...?
कई पीढ़ियों का दबा क्षोभ
हो मुखर उभर अब आया है
हो सकता है तुमको
कई बार हार जाना पड़े
कभी कुछ ज्यादती लगे
बेबात कभी झुक जाना पड़े
तो देकर मान हौसलों को
तुम थोड़ा सा झुक जाना
और थोड़ा कुछ सह जाना...!
अब तुमको है कर्ज चुकाना
सालों परम्पराओं की जंजीरों में
दम घोंटा है जिन्होंने उन
परम-आदरणीय संबंधों का... !
किचिन में देखा है तुमको जब
हाथ बंटाते...बर्तन धोते
या बच्चे की नैपी बदलते
मन मेरा फूल सा खिल उठा है
और मस्तक कुछ ऊँचा होकर
आसमान पर टिक गया है !
तो...समझ रहे हो न बेटों तुम
वक्त करवट बदल रहा है
अब बारी तुम्हारी है....!!
—उषा किरण 🍁
विश्व कविता दिवस पर 🍀🍂☘️🍃🌿🌱
बुधवार, 17 मार्च 2021
गुप्त- गोदावरी
बारीक सी पर गहन
जो पावन धारा बहती अन्तस में ...
गुप्त गोदावरी फेनिल तरंगों में
सबसे छिपा करती निरन्तर समाहित
सारा कल्मष
सारा विष
सबका वमन
ध्यानस्थ...मंथर गति से प्रवाहित !
कि अतृप्त प्यास ही हो जाए जब तृप्ति...
कि विष ही बन जाए जब अमृत..
कि दाह ही हो जाए चंदन...
कि अमावस लगे पूर्णमासी ...
कि अन्त में ही हो पूर्णता का भास...
कि फकीराना मस्ती में रमता जोगी मन ही
समृद्ध हो जाए जब ...
तो और क्या चाहे कोई, किसी से ?
तो क्यूँ माँगे कोई किसी से भी ?
न चाँद
न सूरज
न आँचल भर सितारे
पूर्णता की उपलब्धता पाकर
खिल कर ...सुवासित हो ...
सामने शाख से छूट कर
गिरी है अभी जो धूल में
वो मदमस्त शेफाली होना चाहती हूँ...!!
— उषा किरण 🍂🍃
सोमवार, 15 मार्च 2021
तुरपन
गुरुवार, 11 मार्च 2021
बताना था न पापा...!
मैं निकल पड़ती जब- तब मुँह उठा
चाँद की सैर पर...
अम्माँ नीचे से सोंटी दिखातीं
उतर नीचे...धरती पर चल
पापा अड़ जाते सामने
नापने दो आकाश
पंख मत बाँधो उसके !
अम्माँ झींकतीं
खाना, सफाई, घर- गृहस्थी
ये भी जरूरी हैं
आता ही क्या है इसे
कुछ पता भी है
कितनी तरह के तो तड़के
मूँग और उड़द
अरहर और चना दाल
कुछ पता नहीं फर्क इसे
पापा हंस कर विश्वास से कहते
जिस दिन पकड़ेगी न चमचा देखना
तुम सबकी छुट्टी करेगी
जिस डगर चलेगी
खुद मील का पत्थर गढ़ेगी...!
सब तुम्हारी गलती है पापा
अब देखो न-
मेरे पंख समाते ही नहीं कहीं
कितना विस्तार इनका...
ठीक कहती थीं अम्माँ
इतने तेवर लेकर कहाँ जाएगी,
ज़मीनी हक़ीक़त को कैसे जानेगी ?
पापा ! आसमानों से पहले
चाँद, बादल, इन्द्रधनुष से भी पहले
छानना होता है जमीन को
किताबों से पहले सीखना होता है
चेहरों को पढ़ना...और
लोगों की फितरत पढ़ना
नदियों संग बहने से पहले
बारीक सुई की नोक से
धागे सा पार होना पड़ता है
बताना था न पापा-
स्त्री है तू
बताना था न कि छोटा रख अपना मैं
कि तू गैर अमानत है
बताना था न कि तेरी ज़मानत नहीं,
किसी अदालत में
बताना था न कि-
आकाश की भी होती है एक सीमा
कि पीछे रह जाना होता है
जीत कर भी कभी
चलने देना था न नंगे पैर
पड़ने देने थे छाले पाँवों में
कहना था न धूप में तप
बारिशों में भीग, कि बह जाने दे
थोड़े रंग, कुछ मिट्टी, कुछ सुवास
अब क्या करूँ इस अना का
बस उलझे धागों को सुलझाती
वक्त की सलाइयों पर
बैठी बुन रही हूँ अब
एक सीधा...एक उल्टा
एक सीधा और फिर एक उल्टा...
सब तुम्हारी गलती है पापा
बताना था न...!!
🌺— उषा किरण
बुधवार, 10 मार्च 2021
सुनी हैं ...!
सुनी हैं कान लगा कर
उन सर्द तप्त दीवारों पर
दफन हुई वे
पथरीली धड़कनें
वे काँपती सिसकियाँ
और खिलखिलाहटें !
आन-बान-शान की, शौर्य की
बेशुमार कहानियाँ
वे हैरान करती रिवायतें
बंजर जमीनों की कराहटें
स्वागत में ठुमकते पैर
आवाहन करते गीत-
`केसरिया बालम पधारो म्हारे देस...’
ऊँट, बकरियाँ, आदमी सभी का आधार
`केर साँगरी ‘
लहरिया, बंधेज के खिलखिलाते रंग
रेत के मीलों फासलों पर
राहत देती वो एकाकी,शीतल झील
एक बेटी की इज़्ज़त की खातिर
दो सौ साल से वीरान पड़ा-
वो उजड़ा, भुतहा `कुलधरा गाँव’
गाड़ी के पीछे धूल भरे नंगे पाँवों से
भागते, चिल्लाते बच्चे
`कमिंग...कमिंग...’
अभिभूत मन....धुँधली आँखें !
क्यूँ न लुटा दूँ दिल दुनिया की
सारी दौलत !
सारी नदियों से माँग चुल्लू भर- भर
छोड़ दूँ पानी इन प्यासे बंजर खेतों में !
वापिस लौट तो आई पर
एक छोटा सा राजस्थान
आ गया है संग
मेरी धड़कनों में...!
— उषा किरण
रविवार, 21 फ़रवरी 2021
लड़की की फोटो
वर्ष 1978 ग़ाज़ियाबाद , गाँधी-नगर, बसन्ती सदन -
एम.एम.एच. कॉलेज से ड्रॉइंग एन्ड पेन्टिंग में एम.ए. की पढ़ाई कर रही लड़की की शादी की बातें शुरु हो चुकी हैं। तो सबसे पहले तो एक फोटो की दरकार है लड़की की, वो भी स्टूडियो में मेकअप करके बनारसी साड़ी पहन कर और स्टैंड पर हाथ रख कर पोज बनाते हुए ।सही अनुपात में हंसते हुए। एकदम सही अनुपात से मतलब न थोड़ा सा भी ज्यादा कि बेशर्म लगे और न ही इतना कम जो घुन्नी लगे। लेकिन अब सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ?
किसी तरह माँ ने कहा -
एक फोटो खिंचवा लो ।
क्या जरूरत है ?
अरे सब लड़किएं खिंचवाती हैं न ।
तो ? पर किसलिए?
शादी के लिए भेजनी होती है न ।
तो हैं तो इतनी कोई सी भी भेज दो।
एक भी ढ़ंग की नहीं,और अकेले तो एक भी नहीं है।
जैसी शकल होगी वैसी ही तो आएगी और ग्रुप वाली फोटो पर टिक लगा कर भेज दो।जिसे पसन्द आ जाए करे वर्ना न करे।अहसान नहीं करेगा शादी करके कोई।
ओफ् हो तुमसे तो बात करना ही बेकार है
माँ झुँझला कर बड़बड़ाते हुए उठ गईं ।
खैर फिर एक फैमिली ग्रुप फोटोग्राफ में से गाँधी नगर चौराहे वाले चौधरी फ़ोटो स्टूडियो से लड़की का फोटो निकलवाया गया और लड़के वालों के यहाँ भेजना शुरु किया गया।
जवाबों के सिलसिले शुरु-
पसन्द है
पसन्द नहीं लड़के को
पसन्द है...दहेज कितना देंगे चौहान साहब?
लड़की की भाभी को पसन्द नहीं ।
कहीं लड़के वाले को लड़की नहीं पसन्द तो कहीं पापा को लड़का या घर नहीं पसन्द ।
आखिरकार एक महापुरुष को फोटो पसन्द और पापा को लड़का पसन्द ...अब लड़का और घरवाले लड़की देखेंगे।पापा को घर बुला कर बेटियों को नुमाइश लगा कर दिखाना नहीं पसन्द ।
आगरे मामाजी के घर जाने का प्रोग्राम बनाया गया।साथ में दिखाने लायक साड़ी ब्लाउज भी माँ ने चुपके से सूटकेस में दबा ली।
कल सब `कभी-कभी’ मूवी देखने जाएंगे ।लड़की खुश ! ये लम्बू हीरो एक्टिंग अच्छी करता है ..टाइटिल सॉन्ग बहुत पसन्द है तो समझते हुए भी मामी के कहने पर बिना चूँ चपड़ किए साड़ी पहन ली। कोई मेकअप नहीं। रानी बेटी एक बिन्दी छोटी सी लगा लो । मामी ने धीरे से कहा। नहीं! सपाट मना कर चल दी साथ।अम्माँ, मामा जी, मामी जी , मामी की बेटी और छोटी बहन भी साथ गए बाकी सब घर पर ।
सिनेमा हॉल के बाहर ही `अचानक’ मामाजी के कोई दोस्त की फैमिली के दस- बारह लोग मिले...बड़ी खुशी हुई...बड़ी खुशी हुई के बाद लड़की का परिचय -ये हैं हमारी बहन की बेटी`जलफुकड़ी देवी’😜 लड़की ने जितना रूखा- सूखा सा मुँह बना सकती थी बनाया।
खैर लड़की ने झूम कर मूवी देखी जम कर हंसी , जम कर रोई। कभी -कभी मेरे दिल में खयाल आता है पर धीमे -धीमे सुर मिलाया। खूब डकारें लेकर ठंडा कोका-कोला पिया।खूब मजा लेकर मूवी देखी।
लौटते समय फिर हॉल के बाहर सब साथ मिले तो मामाजी के दोस्त के खानदान ने पुन: पुन: लड़की को ऊपर से नीचे तक खूब आँखें फाड़-फाड़ कर घूर कर देखा । बच्चे बिना बात शरमाए जा रहे थे शायद कल्पनाओं में लड़की को मामी या चाची बना देखने की कल्पना करके। पर लड़की आज जरा नहीं बिदकी। मूवी के खुमार में सब माफ...घूर लो जितना घूरना हो बेशरमों। मन ही मन सोच रही थी इस लम्बू की फिल्म देखने के बदले तो रोज देख लें लड़के वाले...चूँ तक नहीं करेगी।
लड़की का रंग जरा दबा है गोरा नहीं है ! हफ्ते भर बाद लड़के वालों का रिएक्शन आया।लड़की को जरा बुरा नहीं लगा ।ठीक है पहले से देख कर रिजेक्ट कर दिया वर्ना बिना देखे हो जाती शादी तो सारी उम्र लड़का कौए की तरह ठोंगे मारता। तब तो बड़ी वाली बेइज्जती हो जाती। एक महिने बाद दूसरी खबर...स्कूटर की डिमान्ड है यदि देंगे तो शादी हो जाएगी। उस समय लड़कों की दहेज की औकात बस स्कूटर तक ही थी या मोटरसाइकिल तक की। गाड़ी तो किसी- किसी के ही बाप पर होती थी। अब जैसी बात नहीं थी कि हमारा ड्राइवर भी अपनी लड़की की शादी में गाड़ी दे रहा है ।
पापा खुश हैं स्कूटर देने को तैयार हैं ।
जीजाजी और भैया से बात कर रहे हैं। रोकना के लिए जाना है। पर लड़की का खून खौल रहा है। पहले रिजेक्ट करने पर बेइज्जती नहीं लगी पर अब ये तो सरासर बेइज्जती है। वो घायल शेरनी सी आँगन के चक्कर लगा रही है।
अकेले में माँ को घेर लिया -क्यूँ अम्माँ ये स्कूटर ले कर डॉक्टर साहब को हम गोरे लगने लगेंगे क्या ? रहेंगे तो हम तब भी काले ही न ? अरे ये तो लड़के वाले पहले कहते ही हैं जरा भाव बढ़ाने के लिए। वर्ना तुम कोई काली थोड़े ही हो अम्माँ ने लिपाई- पुताई की। हमें नहीं चाहिए किसी से गोरे काले होने का सर्टिफिकेट बताए देते हैं। हम नहीं करने वाले शादी इस डॉक्टर के बच्चे से। लड़की गुस्से से फनफनाई। तुमको शादी करनी है नहीं बस बहाने ढूँढती रहती हो ! अम्माँ को गुस्सा आ गया।हाँ तो बढ़ाएं न अपने भाव अपने घर बैठ कर ...अब तो हमारा भाव बढ़ गया...कह दो नहीं करनी उस फकीर से शादी।डॉक्टर, कलैक्टर ही क्यूँ मुझे खुद पर भरोसा है मेहनत से सब हासिल कर सकती हूँ मैं !
लड़की की भुनभुन और अम्माँ की बड़बड़ कि- जाने कहाँ निभेंगी ये नाक पर मक्खी नहीं बैठने देतीं ।सुगबुगाहट पापा के पास पहुँची। पापा ने कहा हाँ ठीक तो कह रही है वो ...बात खत्म !
खैर ...और लड़के देखे जाने लगे । रिश्तेदारों के फोन खटखटाए गए । चिट्ठियाँ लिखी गईं । पेपर में एड दिया गया।आखिर एक और जगह फोटो पसन्द आई लड़की की। सुना आई ए एस है लेकिन एक लाख कैश की डिमान्ड है।उस जमाने में शायद लाख की वैल्यू आज के करोड़ के बराबर तो होती ही होगी।
पापा को कलैक्टर दामाद का बड़ा लालच पकड़े था । जुगाड़ सोच ही रहे थे कि गाँव की कुछ जमीन बेच देंगे या लोन ले लेंगे ।भनक पाते ही लड़की फिर सिरे से उखड़ गई-भिखारी कलैक्टर, भिखारी कलैक्टर कह कर खूब मुट्ठियाँ हवा में लहराईं छोटी बहन और भाई व अम्माँ के सामने।पापा तक बात गई तो बोले वो कह तो सही रही है तो वो बात भी गई। लड़की को सुकून मिला वो मस्त है फिर से अपनी पेन्टिंग, लेखन, म्यूजिक और ढेरों और शौक में। आसमानों में उड़ती फिरती है जमीन पर पैर ही नहीं रखती।सारे दिन लॉन में , धूप में ईजल लगा कर म्यूजिक सुनते हुए पेन्टिंग करती है या संतरे , मूँगफली खाते हुए पढ़ती रहती है। बराबर वाले घर से अग्रवाल आन्टी टोकती हैं अरे लड़की सारे दिन धूप में बैठ कर काली हो जाएगी छाँव में बैठा कर।लडकी मुस्कुरा देती है बस।
कुछ दिन शान्ति में बीते ही थे कि एक और धमाका हुआ। गाँव से नउआ काका आए हैं बिटिया के लिए रिश्ता लेकर। पापा उनकी आवभगत में कोई कमी नहीं रखते। खूब खा पीकर नउआ काका फूटते हैं कि सौ बीघा जमीन है, ट्रैक्टर है, दो भैंस हैं और लड़का बी ए में पढ़ रहो है , देखन में बिल्कुल रामजी जैसो सुन्दर है। लड़की को खाएबे पिएबे की कौनो दिक़्क़त नहीं आनी है ।लड़की अपने कमरे में पढ़ रही थी बातें उसके कानों में भी पड़ रही थीं। सुन कर हंस-हंस कर लोट-पोट हो गई। अम्माँ का तो मारे गुस्से के बुरा हाल था वो पीछे से बड़बड़ाती रहीं पर पापा के सामने वो हमारी तरह तबड़- तबड़ नहीं करती थीं।खैर नउआ काका को दे लेकर समझा कर विदा किया गया।
उसके बाद लड़की ने अम्माँ से खूब मस्ती की। वो जितना नउआ काका को खरी-खोटी कहतीं लड़की उतनी ही मस्ती करती। अम्माँ हम सोच रहे हैं भैंस का दूध निकालने की कोचिंग ले लें।और बस अम्माँ शुरु हो जातीं ।
खैर फिर अम्माँ की बुआ की बहू के भाई के दोस्त की बहन ने एक प्रोफ़ेसर लड़का बताया। राजपूतों में अच्छी रसूख वाला प्रतिष्ठित परिवार है। पर पापा कुछ अनमने से हो गए।उनका मन है कि पहले दामाद की तरह इंजीनियर हो या डॉक्टर। पर लड़की की अम्माँ ने बहुत समझाया कि वो जॉब करना चाहती है तो प्रॉफेसर ऐतराज नहीं करेगा इंजीनियर के तो प्राय: ट्रान्सफर होते रहते हैं वो नहीं करवाएगा जॉब।पापा मान तो गए पर बहुत बुझे मन से गए हैं लड़का देखने।
पापा बहुत खुश हैं लौट कर कि पहली बार ऐसा हुआ कि किसी लड़के वाले ने दहेज की माँग नहीं की बल्कि क्या डिमान्ड है पूछने पर कहा कि सिर्फ़ आपकी बेटी और कुछ नहीं चाहिए । आपके जैसे प्रतिष्ठित परिवार में रिश्ता जोड़ कर हमें खुशी होगी। सभी का व्यवहार बहुत सम्मान से भरा था।सभ्य, सौम्य, विनम्र लोग।
लड़की ने सुना तो आँख नम हो गईं। न डॉक्टर, न कलैक्टर, न ही इंजीनियर...बस यही तो चाहिए था पापा का सम्मान ! बाकी जो किस्मत को मंजूर...!
खुशकिस्मत औरतें
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...