दो गज कपड़ा लेकर
सिलवा लेना
बहुत सी जेबें
भर लेना उसमें फिर
अपनी पद- प्रतिष्ठा
मैडल-मालाएं
मेज- कुर्सी
कोठी-कार
किताबें-फाइलें
बैंक- बैलेंस
नाते- रिश्ते
बोल-बातें
कपड़े- लत्ते
खाने-पीने
गाने-बजाने
जेवर- कपड़े
चाबी-लॉकर
तेरा- मेरा
गर्व-गुरूर
और.....
अपना "मैं “भी
तो क्या हुआ
जो आज तक
कोई भी
नहीं ले जा पाया
साथ कफन
शायद
तुम ले जा सको...!!
— उषा किरण
#सोया_मनवा_जाग_जरा.......
फोटो; Pinterest से साभार
सटीक
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सोये होने का नाटक करने वालों नहीं जगाया जा सकता..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
बधाई
बहुत धन्यवाद विभा जी !
हटाएंवाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंआभार हृदय से 🌹
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिभा जी !
हटाएंशानदार व्यंग्य हैं उस हर प्राणी के लिए जो काल सिराहने खड़ा होने तक भी भौतिक अभौतिक किसी भी वस्तु और भावों की लालसा में घिरा रहता है ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना