दूर हटो तुम सब
यदि नहीं भाता ,
मेरा तरीका तुमको
मत सिखाओ मुझे
ये करो
ये न करो
ऐसे बोलो
ऐसा न बोलो
वहाँ जाओ
यहाँ मत जाओ
ये देखो
वो मत देखो
इससे बोलो
उससे मत बोलो
ये खाओ
वो न खाओ
ये लिखो
ये न लिखो
शऊर नहीं
ये क्या बेहूदगी
उम्र का लिहाज़ नहीं
बड़ी उड़ रहीं
बड़ी बन रहीं
जाने क्या गम हैं
जाने किस ख़ुशी में
उड़ी जा रहीं
बाल तो देखो
झुर्री आ गईं
बुद्धि न आई....
हाँ तो नहीं आई
क्या करें तो ?
ये मेरी जिंदगी
तुम कौन ?
सबकी पुड़िया बना
रखो न अपनी जेब में
और हटो एक तरफ
आने दो जरा
कुछ ताजी हवा
कुछ खुशबू
सतरंगी किरणें
कुछ उजास
भरने दो लम्बी साँस
चन्द दिन
कुछ पंख,
ओस से भीगे
ये जो हैं न
मेरी मुट्ठी में
जी लेने दो मुझे
अब उन्मुक्त....!!
—उषा किरण
सच जीना अपने ढंग से चाहे कोई कुछ भी बोले,
जवाब देंहटाएंजियो तो बिंदास,
कुछ लोगों का काम ही होता है टोका-टाकी का, उन्हें किनारा करना अच्छा है स्वास्थ्य के लिए
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जी ...धन्यवाद 😊
हटाएंबहुत सुन्दर विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हटाएंजो दूसरों को समझाने का टीका लगाए घूमते हैं उन पर कटाक्ष करती सुन्दर रचना..! मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है..।
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंवाह!बहुत ख़ूब कहा।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत धन्यवाद!
हटाएंधन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंमन को मुक्ति देते विचार, अपने सोचानुरूप जीने का दृढ़ संकल्प।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएं।
होली के मिज़ाज सी मस्त कविता.
जवाब देंहटाएंसच में ये टोका टोकी कहने को छोटी बात पर कब मन में गाँठ बन बैठ जाती पता ही नहीं चलता ...टोकना वाला आस पास ना हो पर ये शब्द हर वक्त साथ रहकर उसी टोन में टोकते रहते...ताउम्र....
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन।
हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार 😊
जवाब देंहटाएंये जो हैं न
जवाब देंहटाएंमेरी मुट्ठी में
जी लेने दो मुझे
अब उन्मुक्त....!!
हाँ,जब मिले ये मुठ्ठी भर जीवन जी लेना चाहिए सबकी टोका टोकि से दूर ,
होली की हार्दिक शुभकामनायें आपको उषा जी
हार्दिक आभार कामिनी जी आपको भी शुभकामनाएँ 🙏😊
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