ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 19 जून 2021

वे कहाँ गुजरते हैं...!!




जो गुजर जाते हैं 

वे तो एक दिन गुजरते हैं

पर जिनके गुजरते हैं

उन पर तो रोज गुजरती है


वे जाते कहाँ हैं

वे तो बस, बस जाते हैं

हमारी यादों में

नीदों में, बातों में

हर छोटी-छोटी चीजों में


वे पलट कर नहीं आते 

पर उनके अक्स पलटते हैं

हमारे बच्चों में

नाती-पोतों  में

उनकी हंसी में

उनकी बातों और आदतों  में


वे याद करते नहीं 

पर वे हमेशा याद आते हैं

हर सुख में, हर दुख में

शादी-ब्याह, रीति-रिवाजों में

तीज त्यौहारों की

चहल-पहल में


वे नहीं देखते पलट कर 

पर हम जरूर पलट कर

एक दिन दिखने लगते हैं 

बिल्कुल उनके जैसे

बच्चे कहते हैं-

एकदम नानी जैसी हो गई हो

या आप हो गए हो बाबा जैसे


जो गुजर जाते हैं

वे कहाँ गुजरते हैं 

गुजरते तो हम हैं 

खुशबुओं से लिपटी

उनकी यादों की गली से

जाने कितनी बार…बार-बार…!!

                   —उषा किरण 🍁🍂🌿🌱

36 टिप्‍पणियां:

  1. सच में जो गुज़र जाते है वो तो बस गुजरते ही हैं लेकिन जो उनके अपनों पर गुजरती है उसका क्या ?
    अंतिम पँक्तियाँ मन को छू गयीं । उनकी खुश्बुओं से लिपटी यादों की गली से ....बहुत खूबसूरत एहसास ।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐💐💐💐💐

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  2. बहुत शुक्रिया संगीता जी…🥰😍

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी  रचना  सोमवार 21  जून   2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संगीता जी मेरी रचना का चयन करने के लिए आभार !

      हटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (२१-0६-२०२१) को 'कुछ नई बाते नये जमाने की सिखाना भी सीख'(चर्चा अंक- ४१०२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. कृपया रविवार को सोमवार पढ़े।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. एकदम नानी जैसी हो गई हो

    या आप हो गए हो बाबा जैसे

    बिल्कुल सही कहा आपने,हम होते ही है माँ-पापा की परछाई से,दिल को गहरे छूते भाव,लाजबाब सृजन,सादर नमन उषा जी

    जवाब देंहटाएं
  7. वे जाते कहाँ हैं

    वे तो बस, बस जाते हैं
    हमारी यादों में
    नीदों में, बातों में
    हर छोटी-छोटी चीजों में
    बिलकुल सत्य कहा आपने..उनके यादें हर दम हमारे मनमस्तिष्क में स्थायी रहती है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. वे जाते कहाँ हैं

    वे तो बस, बस जाते हैं

    हमारी यादों में

    नीदों में, बातों में

    हर छोटी-छोटी चीजों में
    बहुत सुंदर और सटीक लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  9. जो गुजर जाते हैं

    वे कहाँ गुजरते हैं

    गुजरते तो हम हैं

    खुशबुओं से लिपटी

    उनकी यादों की गली से

    जाने कितनी बार…बार-बार…!!

    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना उषा किरण जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  10. एहसासों से सिंचित हृदय स्पर्शी सृजन।
    बहुत सुंदर गहन।

    जवाब देंहटाएं
  11. जो गुजर जाते हैं

    वे कहाँ गुजरते हैं

    गुजरते तो हम हैं

    खुशबुओं से लिपटी

    उनकी यादों की गली से

    जाने कितनी बार…बार-बार
    सच कहा आपने गुजरती तो गुजरने वालों के अपनों पर है..
    बहुत ही भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  12. उषा जी,पहले तो विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं,थोड़ा पारिवारिक व्यस्तता थी।आदरणीय संगीता दीदी ने अंक ही इतना सुंदर सजाया था, कि सब जगह पहुंचने को मन आतुर था । आप की रचना एक सुंदर अहसास को जागृत कर गई । हर पंक्ति में सुंदर यादें आज के परिदृष्य से जुड़ती रहीं। बेहतरीन कृति।

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  13. देर कहाँ जिज्ञासा जी…आपने इतने मनोयोग से पढ़ी ये क्या कम है …🌹

    जवाब देंहटाएं
  14. कहाँ कहाँ से गुजर गया .... बेहद भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  15. हृदय स्पर्शी रचना !!शब्दों का अति सुन्दर प्रयोग !!

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  16. सच है की जो जाता है वो लौटता है किसी न किसी रूप में ... किसी न किसी याद में और इंसान बस सोचता है वजह ... बहुत भावपूर्ण रचना ...

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  17. वे नहीं गुजरते... छूट जाते हैं आसपास ही कहीं!
    बेहतरीन!

    जवाब देंहटाएं

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