शिवना साहित्यिकी में शिखा वार्ष्णेय लिखित पुस्तक `पाँव के पंख’ की समीक्षा प्रकाशित-
शिवना साहित्यिकी में शिखा वार्ष्णेय लिखित पुस्तक `पाँव के पंख’ की समीक्षा प्रकाशित-
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें