'वैश्विक लघुकथा पीयूष’ में दो लघुकथाएं छपी हैं। धन्यवाद ओम प्रकाश गुप्ता जी…आप भी पढ़ कर अपनी राय दीजिए-
पितृदोष
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"हैलो सुगन्धा, बात सुन…कल न ग्यारह बजे तक आ जाना और सुन लन्च भी यहीं मेरे साथ करना है !”
"कल क्या है ? एनिवर्सरी तो तुम्हारी फरवरी में है न, फिर किसका बर्थडे….?”
"अरे नहीं …कल पितृदोष के निवारण का अनुष्ठान है।”
"पितृदोष…?”
"हाँ रे, क्या बताऊँ कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा आजकल। सुबोध का प्रमोशन हर बार रुक जाता है, अनन्या का इस बार भी सी पी एम टी में रह गया, ऊपर से आए दिन कोई न कोई बीमार रहता है। हार कर मम्मी के कहने पर सदरवाले पंडित जी को जन्मपत्री दिखाई थी, तो उन्होंने बताया कि पितृदोष है हम दोनों की पत्री में …जब तक उपाय नहीं होगा तब तक सुख-समृद्धि नहीं आएगी घर में।”
" ओह…अच्छा, ठीक है…आ जाऊंगी ।”
दूसरे दिन ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी लेकर जैसे ही चित्रा के घर पहुंची तो बाहर से ही विशाल कोठी की सजावट देख दिल ख़ुश हो गया। गेंदे और अशोक के पत्तों के बन्दरवार, रंगों व फूलों की रंगोली, धीमे- धीमे बजता गायत्री मन्त्र और अगर- धूप की अलौकिक सुगन्ध ने मन मोह लिया। रसोई से पकवानों की मनमोहक सुगन्ध घर के बाहर तक आ रही थी। अन्दर पीले वस्त्रों में सज्जित दो पंडित पूजा की भव्य तैयारियों में व्यस्त थे।प्रफुल्लित चित्रा भाग-भागकर उनको जरूरत का सामान लाकर दे रही थी।
"ये लीजिए पंडित जी आपने कहा था नाग का जोड़ा बनवाने को…!” उसने एक छोटी मखमली लाल डिब्बी पंडित जी की ओर बढ़ाते हुए कहा, जिसमें नगीने जड़ा , सुन्दर सा सोने का नाग का जोड़ा रखा था।
"आ गईं तुम …बैठो- बैठो बस पूजा शुरु होने ही वाली है…अरे बबली, जरा आँटी के लिए ठंडाई लाना …” चित्रा ने आगे बढ़ कर स्नेह से मेरे हाथ थाम लिए।
बबली कुल्हड़ में बादाम केसर की ठंडाई लेकर आई।मेरा गला सूख रहा था। ठंडाई और ए. सी. से राहत पाकर मैंने अनन्या से कहा-"अनन्या बेटे बाथरूम कहाँ है?
"जी आँटी…यहाँ तो बाथरूम की सफाई चल रही है आप ऊपर वाले बाथरूम में चलिए मेरे साथ” अनन्या मुझे अपने साथ ऊपर ले गई।
जीने के सामने ही एक छोटे से घुटे हुए कमरे में कोई कमजोर से वृद्ध पुरानी, मैली सी धोती पहने बैड पर बैठे थे। ऊपरी तन पर कुछ नहीं था। गर्मी के कारण बनियान उतार कर पास ही रखी थी। छत पर पुराना सा पंखा खटर- खटर चल रहा था, जिसमें से आवाज ज्यादा, हवा कम ही आ रही थी।जून की तपती गर्मी से बेहाल लाल चेहरा, टपकता हुआ पसीना…।
उनकी उजाड़ बेनूर, फटी- फटी ,दयनीय सी आँखें मेरे चेहरे पर जम गईं, मानो भीड़ में खोया बच्चा मुझसे अपना पता पूछ रहा हो।
स्टूल पर रखा अपना खाली गिलास काँपते हाथों से आगे कर सूखे मुंह से धीमी आवाज में कहा "पानी…!”
"जी बाबाजी अभी लाई…आँटी वो उधर लेफ्ट में बाथरूम है …मैं जरा पानी लेकर अभी आई।”
उन बेनूर, बेचैन आँखों की तपिश मुझसे झेली नहीं गई…मैं आगे बढ़ गई। नीचे से पितृदोष-निवारणार्थ अनुष्ठान के पावन मन्त्रों की आवाजें तेज-तेज आने लगी थीं…।
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पहचान
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राखी बाँधने के बाद देवेश, अनुभा के भाई-साहब और बच्चों की महफिल जमी थी। बाहर जम कर बारिश हो रही थी। अनुभा गरम करारी पकौड़ी और चाय लेकर जैसे ही कमरे में दाखिल हुई सब उसे देखते ही किसी बात पर खिलखिला कर हंसने लगे।
`अरे वाह पकौड़ी! वाह मजा आ गया !’
`आओ अनुभा, देखो ये देवेश और बच्चे तुम्हारे ही किस्से सुना- सुना कर हंसा रहे थे अभी ।’
`अरे भाई- साहब एक नहीं जाने कितने किस्से हैं …मेरे कपड़े नहीं पहचानतीं, दो साल हो गए नई गाड़ी आए लेकिन अब तक अपनी गाड़ी नहीं पहचानतीं…और तो और इनको तो अपनी गाड़ी का रंग भी नहीं याद रहता…नहीं मैं शिकायत नहीं कर रहा लेकिन हैरानी की बात नहीं है ये …?
'अरे ….ये तो कमाल हो गया, तुमको अपनी गाड़ी का रंग भी याद नहीं रहता ? अनुभा तुम अभी तक भी उतनी ही फिलॉस्फर हो ?…हा हा हा…!’
अनुभा ने मुस्कुरा कर इत्मिनान से प्लेट से एक पकौड़ी उठा कर कुतरते हुए कहा-
`हाँ नहीं याद रहता…तो इसमें हैरानी की क्या बात है ? अपनी- अपनी प्रायर्टीज हैं भई…कपड़े, गाड़ी, कोठी, जेवर पहचानने में ग़लती कर सकती हूँ भाई - साहब क्योंकि उन पर मैं अपना ध्यान जाया नहीं करती…पर पूछिए, क्या मैंने रिश्ते और अपने फर्ज पहचानने और निभाने में कोई चूक की कभी…? ये सब कैसे याद रहे क्योंकि मेरा सारा ध्यान तो उनको निभाने में ही जाया हो जाता है…खैर…और पकौड़ी लाती हूँ!’
अनुभा तो मुस्कुरा कर खाली प्लेट लेकर चली गई लेकिन कमरे में सम्मानजनक मौन पसरा हुआ छोड़ गई ! भाई- साहब ने देखा देवेश की झुकी पलकों में नेह व कृतज्ञता की छाया तैर रही थी।
— उषा किरण
नव वर्ष शुभ हो |
जवाब देंहटाएंअपको भी नववर्ष की शुभकामनाएँ…धन्यवाद 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंजी ! .. सादर नमन संग आभार आपका .. उपरोक्त यथार्थ की चिकोटियों वाले मर्मस्पर्शी दो लघुकथाओं से रूबरू कराने के लिए ...
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