ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 16 जनवरी 2025

यादों के गलियारों से

 


बचपन में ख़ुशमिज़ाज बच्ची तो कभी नहीं थे…घुन्नी कहा जा सकता था…पर मजाल कोई कह कर तो देखता ,फिर तो सारे दिन रोते…फैल मचाते।

याद है …जब नौ - दस बरस के होंगे मुन्नी जिज्जी,हमारी फुफेरी बहन बड़े चाव से हम भाई- बहनों को अपने गाँव ले गईं …खूब आम के बाग थे, हवेलीनुमा बड़ा सा घर आंगन, खूब सारे लोग…और बीच आँगन में ठसकदार उनकी मोटी सी सास खटिया पर बैठी पंखा झलते हुए सबको निर्देश दे रही थीं । 

खूब प्लानिंग हुई कि नदी पर जाकर पहले नहाएंगे, फिर गाँव का फेरा लेंगे, फिर आलू की कचौड़ी के साथ आम खाए जाएंगे। जिज्जी के पाँच बच्चे और उनकी देवरानी के चार…सब हम लोगों के आगे- पीछे खुशी व उत्साह से भागे फिर रहे थे। 

तभी कयामत हो गई…हम किचिन की जगह टॉयलेट में गल्ती से घुस गए। ख़ुशमिज़ाज जिज्जी के तो वैसे ही हर समय दाँत बाहर ही रहते थे, वो बड़ी जोर से ही- ही करके हंस दीं और उनके साथ पला भर बच्चे भी हंस पडे़…हम घक्क…इतनी बेइज्जती ! भाग कर कमरे में जाकर  बैड पर उल्टे लेट कर  रोने लगे और ज़िद पकड़ ली घर जाना है। सारा घर मना कर थक गया …जिज्जी, जीजाजी ने बहुत मनाया चलो बाग घूम कर आते हैं, नदी में नहाते हैं पर मजाल जो तकिए से मुँह बाहर निकाला हो …न खाया कुछ न पिया । जिज्जी की सास लगातार जिज्जी को डाँट रही थीं कि-

"ऐसी कैसी है हंसी तुम्हारी …हर समय खी-खी…बेचारी बच्ची…!” 

दूसरे दिन बहुत भारी मन से जीजाजी हम लोगों को वापिस छोड़ आए। बड़ी बहन ने जितना हो सकता था खूब दाँत किटकिटाए…सालों उनका कोप - भाजन बनना पड़ा, पीठ पर घूँसा भी पड़ा…खुद को भी खुद ने बहुत लताड़ा। 

जिज्जी के गाँव फिर कभी जाना नहीं हुआ । जो कान्ड कर आए थे फिर शर्म के कारण हिम्मत ही नहीं पड़ी दुबारा जाने की । सुना है जिज्जी की सास ने हमको सालों याद किया और हम उनको बहुत भाए…कमाल है ? 

ऐसा नहीं था कि खुद रुकना नहीं चाहते थे , पर जिद रुपी शैतान ने बचपन में हमेशा हमारे मन पर कब्जा किया …जकड़ कर रखा। जैसे - जैसे बड़े  हुए अपने मन के अड़ियल घोड़े की लगाम कसी, उस पर क़ब्ज़ा किया और कई बार मन की न सुन कर जीवन में बहुत कुछ खोया…हार दोनों  तरह से हमारी  ही…!

खैर अब तो बहुत ही सयाने हो गए हैं…कोई शक ????? 😂



4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 17 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. वाह ! रोचक संस्मरण ! वैसे बालहठ तो जगत प्रसिद्ध है ही,

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यादों के गलियारों से

  बचपन में ख़ुशमिज़ाज बच्ची तो कभी नहीं थे…घुन्नी कहा जा सकता था…पर मजाल कोई कह कर तो देखता ,फिर तो सारे दिन रोते…फैल मचाते। याद है …जब नौ -...