ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 9 जनवरी 2025

'The Scream’





 एक ऐसा शहर जिसमें पूरा बाजार तो सजा है पर एक भी इंसान दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है, ना हि कोई आवाज है। मैं अपनी बड़ी बहन का हाथ पकड़कर उन रास्तों से गुजर रही हूँ, सहसा दूर से किसी के भागते कदमों की आहट आती सुनाई देती है। मुड़कर देखती हूँ तो कोई शख्स हमारी ओर तेजी से दौड़ कर आता दिखाई देता है। हम दोनों भी अनायास डरकर भागने लगते हैं और मैं शहर के बाहरी गेट के बाहर गाड़ी के पास खड़े अपने ड्राइवर को जोर-जोर से आवाज लगाने लगती हूँ…वह आदमी पास आता है, और पास…मैं आँखें बन्द कर लेती हूँ, वह भागता हुआ गेट के बाहर चला जाता है…झटके से मेरी आँखें खुल गईं । उफ्…दोपहर की झपकी लेते न जाने किन दहशतों के गलियारों से गुजर गई…


न जाने क्यों तुरन्त मेरे जेहन में नार्वे के  आर्टिस्ट ‘एडवर्ड मंख’ Adward Munch की पेंटिंग चीख The Scream  उससे जुड़ गई। इसीतरह जीवन के कई भाव, कई दृश्य व कई घटनाएं प्राय: मुझे किसी न किसी पेंटिंग से मानसिक व भावनात्मक रूप से अनायास जोड़ देते हैं…


नार्वेजियन आर्टिस्ट ‘एडवर्ड मंख’ Adward Munch एक शापित कलाकार…जिसने मृत्यु की दहशत में जीवन गुजारा और उसको अपने रंगों व रेखाओं में ताउम्र ढाल कर उन भावनाओं को ही अमर कर गया। एक कलाकार के ही अख़्तियार में होता है किसी याद, भावना, अहसास, व्यक्ति या घटना को चित्र में ढाल कर अमर कर देना…


एडवर्ड मंख नॉर्वे में जन्मे अभिव्यन्जनावादी चित्रकार हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति, The Scream विश्व कला की सबसे प्रतिष्ठित पेंटिंग में से एक है। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में, उन्होंने जर्मन अभिव्यक्तिवाद और उसके बाद के कला रूपों में एक महान भूमिका निभाई; खास तौर पर इसलिए क्योंकि उनके द्वारा बनाए गए कई कामों में गहरी मानसिक पीड़ा दिखाई देती थी।


मूलतः 'द स्क्रीम’ आत्मकथात्मक पेंटिंग है, जो Munch के वास्तविक अनुभव पर आधारित  रचना है। मंख ने याद किया कि वह सूर्यास्त के समय टहलने के लिए बाहर गये थे जब अचानक डूबते सूरज की रोशनी ने बादलों को खूनी लाल  कर दिया। उन्होंने महसूस किया कि "प्रकृति के माध्यम से एक अनंत चीख गुजर रही है", …प्रकृति के साथ मिलकर कलाकार ने अपने अन्दर की डर व दहशत भरी चीख को कैनवास पर साकार कर अमर कर दिया। प्रकृति केवल वह ही नहीं है जो आंखों से दिखाई देती है, इसमें आत्मा के आंतरिक चित्र भी सम्मिलित होते हैं। सम्भवतः यह आवाज़ उस समय सुनी गई होगी जब उनका  दिमाग असामान्य अवस्था में था, तभी Munch ने इस चित्र को एक अलग शैली में प्रस्तुत किया।


20वीं सदी की शुरुआत में  उनकी इस पेंटिंग्स को आधुनिक आध्यात्मिक पीड़ा के प्रतीक के रूप में देखा गया।


मंख का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, जो बीमारियाँ झेल रहा था। जब वे पाँच साल के थे, तब उसकी माँ की तपेदिक से मृत्यु हो गई, जब वह 14 साल के थे, तब उनकी सबसे बड़ी बहन की मृत्यु हो गई, दोनों ही क्षय रोग से पीड़ित थे। इसके बाद मंख के पिता और भाई की भी मृत्यु हो गई जब वे अभी भी छोटे ही थे, कि एक और बहन मानसिक बीमारी से पीड़ित हो गई । "बीमारी, पागलपन और मृत्यु," जैसा कि उन्होंने कहा, "वे काले स्वर्गदूत थे जो मेरे पालने पर नज़र रखते थे और मेरे पूरे जीवन में मेरे साथ थे।"


माँ की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण उनके पिता ने किया। एडवर्ड के पिता मानसिक बीमारी से पीड़ित थे और इसने उनके और उनके भाई-बहनों के पालन-पोषण पर भी बुरा प्रभाव डाला। उनके पिता ने उन्हें गहरे डर के साए में पाला, यही कारण है कि एडवर्ड मंख के काम में एक गहरा अवसाद का स्वर दिखाई देता है।

छोटी उम्र में ही मंख को चित्रकारी में रुचि थी, जबकि उन्हें बहुत कम औपचारिक प्रशिक्षण मिला। 


1917th में न्यूयार्क प्रवास के दौरान मुझे आधुनिक कला संग्रहालय, ( MoMA ) में कुछ समय के लिए खास पहरेदारी में बतौर मेहमान आई इस पेंटिंग को सामने से देखने का मौका मिला और जब आप पेंटिंग के आमने-सामने  होते हैं, तो आप हर छोटी-छोटी बात पर ध्यान देने लगते हैं, जैसे कि हर एक ब्रशस्ट्रोक, चित्रकार द्वारा इस्तेमाल किए गए रंगों के अलग-अलग शेड्स, रेखाएं…आप कलाकृति की आँखों में आँखें डाल संवाद स्थापित कर सकते हैं…उससे ज़्यादा आत्मीयता स्थापित कर पाते हैं। शायद उसी का परिणाम है कि इस पेंटिंग से मेरे अपने भय व दहशत के पलों व भावों के तार कहीं गहरे तक जुड़ गए….!!


- उषा किरण 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

'The Scream’

 एक ऐसा शहर जिसमें पूरा बाजार तो सजा है पर एक भी इंसान दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है, ना हि कोई आवाज है। मैं अपनी बड़ी बहन का हाथ पकड़कर उन र...