मथुरा में पाँच साल पापा की पोस्टिंग रही ।बी. ए. में किशोरी रमण कॉलेज में एडमिशन लेकर बहुत सुखद अहसास हुआ डिग्री कॉलेज का स्वतन्त्र माहौल बहुत माफ़िक़ आया।कभी भी आने-जाने की व क्लास से बन्क मारने की स्वतन्त्रता बहुत सुकून देती थी।वहाँ की कैंटीन जैसे समोसे हमने कहीं नहीं खाए।मैं , मन्जु और बृजलता खाली पीरियड में समोसे खाते थे !
कॉलेज की बाउन्ड्री नीची थी और खाली पीरियड नें लड़किएं ग्राउंड में चहकती रहती थीं । कॉलेज के बाहर साइकिलों पर लड़के मंडराते रहते थे । वाइस प्रिंसिपल लीला मैडम बहुत कड़क पर्सनैलिटी थीं , हमेशा सिर के ऊपर बीच में गुलाब का फूल लगातीं थीं ,वो लड़कों को हड़काती रहती थीं । कॉलेज की व्हाइट यूनिफ़ॉर्म थी तो लड़के बाउन्ड्री की वॉल पर बड़ा- बड़ा 'विधवा-आश्रम’ लिख जाते थे।डॉ० सरोजनी मैडम प्रंसिपिल थीं उनका सब्जैक्ट हिन्दी था , वो प्राय: कभी भी शौकिया महादेवी वर्मा पढ़ाने आ जाती थीं और पढ़ाते- पढ़ाते बड़ी रोमान्टिक हो जाती थीं ।हम सब खूब एक दूसरे को इशारे करते और मजे लेते ।लीला-मैडम,कुसुम सिंह मैडम,निर्मल मैडम आदि सभी की स्मृतियाँ आज भी सजीव हैं।मेरे भाग्य से उसी साल वहाँ पर ड्रॉइंग एन्ड पेन्टिंग खुल गया था जिसकी क्लास में मेरा सबसे ज़्यादा मन लगता था।बहुत जल्दी ही कुसुम सिंह मैडम की फेवरिट स्टुडेंट हो गई।वहाँ की सभी टीचर्स को नमन🙏
मैं एम. ए. पेन्टिग से ही करना चाहती थी लेकिन वहाँ इसमें एम.ए.न होने के कारण मैंने अपनी फ्रैंड बृजलता के साथ संस्कृत में फ़ॉर्म भर दिया।कॉलेज में कैजुअल क्लासेज़ की व्यवस्था के तहत तीन टीचर्स की नियुक्ति की गई थी कुल पाँच बच्चे थे हम।ख़ूब मन लगता था क्लास में क्योंकि जहाँ भी ज़बर्दस्ती का क़ैद जैसा अनुशासन हो वहाँ दम घुटता था और यहाँ संस्कृत साहित्य और फिलॉस्फी की क्लास में जो पेड़ों के नीचे खुले में होती थीं आनन्द आता था ।वेद व भारतीय दर्शन की क्लास श्रद्धेय वनमाली शास्त्री जी लेते थे जिन पर मेरी अगाध श्रद्धा थी ।हालाँकि वे कभी भी स्कूल नहीं गए पर प्रकान्ड पन्डित थे।वे सचमुच में योगी ही थे।उन्होंने इतनी अच्छी तरह से गूढ़ ग्रन्थों को समझाया जो आज तक याद है।
एम. ए. फ़ाइनल में वे क्लास होनी बन्द हो गईं और मेरी फ्रैंड ने बृन्दावन में एडमिशन ले लिया पर मेरा बस से डेली सफर करने का मन नहीं था तो हमने शास्त्री जी से अनुरोध किया कि वो हमें घर पर पढ़ा दिया करें और उन्होंने स्वीकार कर लिया वे हमें रोज़ पढ़ाने आते थे हमने ऑप्शनल पेपर में फिलॉस्फी भरा था ।आचार्य जी का औरा इतना दिव्य था कि उनके पास बैठ कर पढ़ने में अलौकिक अनुभूति होती थी।जब पापा उनकी फ़ीस का लिफ़ाफ़ा पकड़वाते तो वे बेहद अपराध- बोध से भर जाते थे अत: जैसे ही पापा लिफाफा देने आते हम उठ कर चले जाते थे।
एग्ज़ाम को बस चार दिन रह गए थे और मीमांसा की किताब बाक़ी थी हमें बहुत घबराहट हो रही थी कई बार पढ़ने की कोशिश का पर समझ नहीं आ रहा था कुछ ! आचार्य जी ने कहा टेन्शन मत लो सब हो जाएगा।दो दिन पहले उन्होंने कहा कि आज मीमांसा कराएँगे तुम किताब बन्द कर रख दो और बस ध्यान से सुनती रहो।वो बोलते रहे हम सुनते रहे ।पूरी किताब पर डेढ़ घन्टे का लेक्चर देकर कहा कि बस एक बार पढ़ लेना और जो सुना- समझा है अपने विवेक से लिख आना ! हमने ऐसा ही किया !
बी.आर.कॉलेज ,आगरा में सेन्टर था तो पेपर वाले दिन सुबह ही आगरे के लिए निकल जाते थे ।फिलॉस्फी का पेपर बहुत अच्छा आया था लेकिन चार ही प्रश्न का उत्तर लिख पाए और घन्टी बज गई हमारी सासें रुक गई मानो...पर धड़ाधड़ लिखते रहे ! सब बच्चे चले गए कॉपी जमा करके ! एक टीचर भी चले गए पर दूसरे चुपचाप कुर्सी पर बैठे रहे न उन्होंने हमसे कॉपी माँगी न हमने दी ! हम बार- बार डर के उनको देख रहे थे वो गॉगल्स लगाए मुँह में पान दबाए शान्ति से बाहर देखते बैठे हमें किसी देवदूत से कम नहीं लग रहे थे ! पूरे बीस मिनिट एक्स्ट्रा लेकर हमने आन्सर पूरा लिखा कॉपी देकर सर को बार- बार थैंक्यू बोला वो मुस्कुरा कर कॉपी समेट कर चले गए !
जिंदगी भर उन अनजान टीचर को नहीं भूल सकी ! उस पेपर में दोनों सालों के सभी पेपर्स से सबसे ज्यादा मार्क्स आए ! उनसे मैंने सीखा कि टीचर का सम्वेदना- पूर्ण व्यवहार स्टुडेंट के मन में अगाध श्रद्धा व उदारता के प्रति आस्था के बीज बो देता है ।पूरी जॉब के समय एग्जाम की ड्यूटी में मैंने कभी भी स्टुडेंट से टाइम पूरा होने पर कॉपी नहीं छीनी अपितु उनके रिक्वेस्ट करने पर उन अनजान टीचर को याद कर कुछ टाइम एक्स्ट्रा भी दे देती थी और स्टुडेंट के प्रति सहृदय भी रहती थी।तो नमन आचार्य जी को और उन अनजान टीचर को और उनकी सम्वेदना को भी , 🙏
पापा का ट्रान्सफर फिर ग़ाज़ियाबाद हो गया और वहाँ पर एम एम एच कॉलेज में मैंने एम ए ,ड्रॉइंग एन्ड पेन्टिंग में एडमिशन ले लिया और मेरा बरसों का सपना पूरा हुआ।मैं और मेरी फ्रैंड लता घन्टों लाइब्रेरी में नोट्स बनाते थे।और के. डी. पान्डे सर को चैक करने के लिए देते थे तो सर चैक कर लौटाते समय नोट्स की तारीफ़ करते थे कुछ लड़कों ने हमसे एक दिन नोट्स माँगे हमने मना कर दिया तो चिढ़ कर एक दिन ब्लैक-बोर्ड पर लिख दिया "उषा किरण इज माई फ्रैंड” ।हम अपनी फ्रैंड्स के साथ बातों में मस्त थे तो नहीं ध्यान दिया ।
पान्डे सर ने क्लास में आते ही देखा और बोले अरे ये किसने लिखा है और ब्लैक बोर्ड साफ़ कर दिया ।हमने जैसे ही पढ़ा मारे ग़ुस्से और अपमान से हमारा मुँह लाल हो गया और हम रुआँसे होकर नीचे मुँह करके बैठ गए। आज से बयालीस साल पहले लड़के और लड़कियों की दोस्ती को अच्छा नहीं समझा जाता था।
सर ने हमें देखा तो बोले कि "अरे तुम क्यों परेशान हो रही हो कोई दोस्ती करना चाहता होगा कह नहीं पाया तो लिख दिया ।”
फिर कहा "तुम इतना क्या सोच रही हो देखना एक दिन तुम किसी ऊँची कुर्सी पर बैठी होगी और ये सब### लगे होंगे कहीं लाइन में !”
फ़ाइनल में हमारी शादी हो गई हमने बहुत कहा कि एम. ए. के बाद करेंगे लेकिन लड़का मिल चुका था और पापा चाहते थे कि रिटायरमेण्ट से पहले ही शादी कर दें तो हो गई शादी और हमने आर.जी.कॉलेज,मेरठ में ही एडमिशन ले लिया जहाँ शुरु में स्टुडेन्ट और टीचर्स ने हमें एकदम ही नकार दिया।न टीचर को हमारा काम पसन्द आ रहा था न ही कोई फ्रैंड थी । एम. एम. एच.कॉलेज में हम क्लास के बेस्ट स्टुडेंट थे ,कहानी और कविता भी छपती थीं तो क्लास में व टीचर्स में अलग प्रतिष्ठा थी , रुतबा था और यहाँ हमें कौड़ियों के भाव तोला जा रहा था ।हमने पढ़ाई के कारण हनीमून पर जाने के लिए भी मना कर दिया था ।टीचर्स की अवहेलना और तिरस्कार से आत्मविश्वास कीं धज्जियाँ उड़ गईं ...डिप्रेशन में आने लगे ...हर समय रोना आता था ।ऊपर से क्लास में हम अकेले मैरिड थे तो एक अलग ही प्रजाति के नजर आते थे ।नई शादी , बड़ी सी जॉइन्ट फैमिली और कॉलेज का स्ट्रैस बहुत अधिक था।तब मेरे हस्बैंड मुझे अपने दोस्त मेरठ कॉलेज के पेन्टिंग के प्रोफ़ेसर डॉ. आर. ए. अग्रवाल सर के पास ले गए जिन्होंने थ्योरी में मेरी मदद की।पूरे परिवार से बहुत अपनापन व प्यार मिल भाभी जी का सरल व प्यार भरी आत्मीयता सुकून देती थी तो बच्चे भी खूब घुल- मिल गए।
प्रैक्टिकल के लिए मेरठ कॉलेज के प्रोफ़ेसर डॉ.दिनेश शर्मा सर और उनकी पत्नी डॉ. सुधा शर्मा मैडम जो आर. जी कॉलेज में ही प्रोफ़ेसर थीं उनसे भी उनका परिचय था तो उनके पास ले गए ।वो लोग ट्यूशन नहीं करते थे पर रिक्वेस्ट करने पर हमें पेन्टिंग सिखाने के लिए राज़ी हो गए ।हम उनके घर पर जाकर पेंटिंग सीखने लगे और बहुत जल्दी ही बच्चों से और उन लोगों से आत्मीयता हो गई। उन लोगों से न सिर्फ़ पेंटिंग सीखी और बहुत कुछ सीखा ।सुधा दीदी से अचार बनाने के व कुछ किचिन के टिप्स भी मिले और पूरे परिवार का स्नेह मिला । मेरठ में दो आत्मीय परिवारों सेघुलना -मिलना ,आना- जाना हुआ जो आज भी क़ायम है कॉलेज में भी कुछ दोस्त बन गईं और मन लगने लगा।पेन्टिंग में एम. ए. करते जिन गुरुजनों ने मदद की सभी को सादर नमन ।🙏
एम. ए. करते ही आर.जी .कॉलेज में ही ट्यूटर की पोस्ट पर हमारा सिलेक्शन हो गया और हमने टीचिंग की शुरुआत की।राका मैडम, सविता नाग मैडम, सुधा मैडम,सावित्री मैडम ,मृदुला मैडम,सुषमा मैडम के साथ स्टाफ़ रूम में साथ चेयर शेयर करते कितनी ख़ुशी मिलती थी बता नहीं सकते ।सभी टीचर्स का प्यार व आत्मीयता भरे व्यवहार के कारण खोया हुआ आत्मविश्वास दुगना होकर वापिस आया ।
सभी से भरपूर स्नेह व मार्गदर्शन मिला और आगे जाकर परस्पर मित्रवत् सम्बन्ध विकसित हुए।सबिता नाग मैडम ने "कृति आर्टिस्ट एसोसिएशन “ की स्थापना की तब उनके साथ कई शहरों में प्रदर्शनी लगाईं और कई वर्कशॉप अटैंड कीं ! हम कभी सुस्त पड़ते तो वे प्रोत्साहित कर पेन्टिंग बनवा लेती थीं ।डॉ. आर ए अग्रवाल सर के साथ पी-एच .डी .की और फिर मोदीनगर में जी डी एम पी जी कॉलेज नया खुला था उसमें परमानेन्ट जॉब लग गयाऔर उस कॉलेज की प्रथम टीचर बनने का सौभाग्य मिला !
एक बार मेरठ कॉलेज में सेमिनार अटैंड करने गई तो डॉ. आर ए अग्रवाल सर ने बातों ही बातों में कहा एक दिन आपको यहाँ आकर हैड की कुर्सी सम्भालनी है देखिएगा मैं आपको ही चार्ज सौंपूँगा। सत्रह साल बाद मेरा ट्रान्सफर मेरठ कॉलेज में हो गया और तीन साल बाद अग्रवाल सर ने मुझे जब चार्ज सौंपा तो वो ही बात याद दिलाई कि देखिए मैंने पहले ही कह दिया था कि एक दिन हैड का चार्ज आपको ही सौंपूँगा ! पान्डे सर एक बार प्रैक्टिकल के एग्जामिनर बन कर डिपार्टमेन्ट आए तो बोले -
“मुझे बहुत गर्व है तुम पर जहाँ का मैं स्टुडेन्ट था आज तुम वहाँ कि हैंड ऑफ दि डिपार्टमेंट हो !” उन्होंने उस दिन क्लास में जो उद्घोषणा की थी वो भी याद दिलाई और बधाई दी। आज सर नहीं हैं पर मैं उनको मन ही मन श्रद्धांजलि देती हूँ ।
मैं चार्ज लेते ही बहुत बीमार रही पूरे वर्ष भर इलाज चला तब डॉ आर ए अग्रवाल सर ने रिटायर होने के बाद भी कई दिन चलने वाले हर प्रैक्टिकल में आकर मदद की और हमेशा हर समस्या का निराकरण किया। डॉ सुधा मैडम व डॉ दिनेश सर कुछ साल बाद अमेरिका चले गए थे पर जब भी इंडिया आते हैं मैं अब भी उनसे बहुत कुछ सीखती हूँ वाक़ई वे बहुत अच्छे आर्टिस्ट हैं।
इस साल रिटायर हो गई ।पुरानी यादों के साथ अपने सभी गुरुजनों को ये मेरी भावान्जलि है ,! सच में मुझे मेरे गुरुओं का आशीर्वाद बहुत फला है !
तो सभी गुरुजनों को मेरा धन्यवाद !
धन्यवाद मेरे जीवन को दिशा देने के लिए!
धन्यवाद मेरे सपनों को पूरा करने में मेरी मदद करने के लिए !
और मुझे मान-सम्मान पूर्ण जीवन यापन में मदद करने के लिए धन्यवाद और नमन !🙏
और अन्त में मेरे उन सभी आध्यात्मिक गुरुओं विशेषत:पूज्य स्वामी शंकरानन्द जी और पूज्य स्वामी सुबोधानन्द जी को मेरा नमन जिन्होंने अज्ञान से ज्ञान की तरफ़ ले जाने वाली राह दिखाई ...!
गुरु बिन ज्ञान न उपजै,
गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को,
गुरु बिन मिटे न दोष॥
सभी गुरुओं के चरणों में मेरा सादर नमन 🌼🌸🌼🌸🌼🌸🌼🌸🙏