TANA BANA
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
जिन संबंधों को हम भावनाओं के रेशमी तन्तुओं से बुनते हैं, प्यार की सुगन्ध डालते हैं, दिल के क़रीब रखते हैं, वे ही संबंध कभी-कभी जरा सी ठेस स...
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