ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

'' बैजनाथ मंदिर ''--(काँगड़ा )


                                         
 पूर्व निश्चित प्रोग्राम केअनुसार आश्रम के बाद हम लोग काँगड़ा जिले के कस्बे 'बैजनाथ' जो कि पालमपुर से १४ कि मी की दूरी पर है स्थित 'बैजनाथ' मंदिर के लिए निकल लिए जो की हिन्दुओं के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। 
तेरहवीं शताब्दी में बने शिव मदिर को 'बैजनाथ' अर्थात वैद्य +नाथ भी कहा जाता है इसका पुराना नाम ' कीर- ग्राम' था। मंदिर के उत्तर पश्चिम छोर पर `बिनवा ‘ नदी बहती है जो आगे जाकर ब्यास नदी में मिलती है.
कहते हैं कि त्रेता युग में रावण ने घोर तपस्या की और अपने नौ सिर काट कर उनकी आहुति दी जब वो दसवॉं सिर काटने लगा तो शिवजी ने उसका हाथ पकड़ लिया और वर माँगने को कहा रावण ने कहा कि आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ  और दूसरा यह कि आप मुझे बलशाली बना दें शिव जी ने तथास्तु कहा और अपने दो शिवलिंग  स्वरूप दो चिन्ह रावण को दिए और कहा कि इनको भूमि पर मत रखना रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र (बैजनाथ क्षेत्र) पहुंचने पर एक बैजू नामक  ग्वाले को शिवलिंग पकड़वा कर लघुशंका के लिए चला गया बैजू शिवजी की माया से भार वहन नहीं कर सका और शिवलिंग धरती पर रख कर चला गया और दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए ।दोनों शिवलिंग 'चन्द्रभान' एवम् 'बैजनाथ' नाम से जाने गए शिवजी मंदिर के समक्ष नंदी की मूर्ति है लोगों का विश्वास है कि नन्दी के कान में मन्नत मांगने से पूरी होती है ।हमने जब लोगों को ऐसा करते देखा तो हमने हमने भी नन्दी के कान में अपनी मन्नत माँगी ।मंदिर परिसर में कुछ छोटे मंदिर भी हैं ।
कहते हैं कि द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया था।शेष निर्माण कार्य 'आहुति' एवं 'उनुक' नामक दो व्यापारियों ने १२०४ ई० में पूर्ण करवाया ।यह स्थान शिवराम के नाम से
उत्तर भारत में प्रसिद्ध है ।
वर्ष भर यहॉं पर भक्त-जन एवम् विदेशी पर्यटक दर्शन हेतु आते हैं ।महाशिवरात्रि में हर वर्ष पॉंच दिवसीय राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाता है।
मंदिर के साथ बहने वाली `बिनवा खड्ड' पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। लोग स्नान के बाद  पूजा अर्चना करते है।  हम लोग भी पूजा-अर्चना कर जल्दी वापिस लौट लिए क्योंकि तेज धूप के कारण फ़र्श तप रहा था और पैर जल रहे थे। लौटते समय मैंने एक बात पर गौर किया कि कॉंगड़ा के हर मंदिर के निर्माण से  पांडवों के अज्ञातवास का संबंध जुड़ा है ।


                                                                 











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