ताना - बाना - मेरी नज़र से - 9
ताना-बाना
उषा किरण
शिवना प्रकाशन
पूरी ज़िन्दगी रामायण
महाभारत की कथा जैसी होती है
समय का दृष्टिकोण
हर पात्र
हर स्थिति-परिस्थिति की व्याख्या
अपनी मनःस्थिति की आंच पर
अलग अलग ढंग से करता है ...
महाभारत की कथा जैसी होती है
समय का दृष्टिकोण
हर पात्र
हर स्थिति-परिस्थिति की व्याख्या
अपनी मनःस्थिति की आंच पर
अलग अलग ढंग से करता है ...
- रश्मि प्रभा
ताना-बाना एक व्याख्या है पल पल जिये एहसासों की, नज़र से गुजरते पात्रों की, शब्दों की, स्त्री पुरुष की,प्रकृति की, सप्तपदी की,मातृत्व की, तूफान के आसार की, मानसिक चक्रव्यूह की, अदृश्य शक्ति की ....
"क्या होगा कल बच्चों का ?
....
वही जो होना है"
....
वही जो होना है"
यह जवाब झंझावात में वही देता है, जिसकी पतवार पर प्रभु की हथेलियों के निशान होते हैं, मृत्यु के खौफ़ से जो लड़ बैठता है ।
अब इसे जीने का सलीका कह लो, या अपनी आत्मा से मौन साक्षात्कार ।
अब इसे जीने का सलीका कह लो, या अपनी आत्मा से मौन साक्षात्कार ।
तभी तो
"अंजुरी में संजोकर तुमसे
ढेरों प्रश्न पूछती हूँ"
"अंजुरी में संजोकर तुमसे
ढेरों प्रश्न पूछती हूँ"
और प्रत्युत्तर में तुम्हें
"निरुत्तर
निःशब्द ही देखना चाहती हूँ !"
निःशब्द ही देखना चाहती हूँ !"
प्रश्न तो अम्मा के लिए भी रहे, खुद अपने लिए, पर - अम्मा के होने का,अपनी परछाई के होने का एहसास मात्र सुरक्षा कवच सा रहा ...
"कभी लड़ नहीं पाई तुमसे
क्योंकि तुम्हारी ही परछाई थी मैं अम्मा ...
नहीं लड़ पाती मैं
आज भी
ख़ुद अपनी परछाई से
समेट लेती हूँ ख़ुद को
बस एक संभ्रांत चुप्पी में"
क्योंकि तुम्हारी ही परछाई थी मैं अम्मा ...
नहीं लड़ पाती मैं
आज भी
ख़ुद अपनी परछाई से
समेट लेती हूँ ख़ुद को
बस एक संभ्रांत चुप्पी में"
एक ख़ामोशी में जाने कितनी नदियों,सागर,महासागर की उद्विग्नता होती है ... समझा है क्या किसी ने, जो बोलकर अपना अस्तित्व खो दूँ !!!
क्रमशः
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