ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
गुरुवार, 9 जुलाई 2020
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कुछ हट कर ….
दो तरह के सोचने के तरीके हैं- कन्वर्जेन्ट थिंकर और डाइवर्जेंट थिंकर, जो लोगों की समस्या-समाधान और रचनात्मकता में अलग-अलग दृष्टिकोण को दिखा...

उत्तम 👌👌👍
जवाब देंहटाएंसही कहा मैम 👍👍
थैली भरी एक थमा के अर्जुन की जगह भी ले लेते हैं :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिका।
जवाब देंहटाएंइतने सुंदर शब्दों को पिरोया है आपने
जवाब देंहटाएंइतने गहरे विचार बहुत खूब
मैंने हाल ही में ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन करना चाहती हूं कि आप मेरे पोस्ट को पढ़े और मुझे सही दिशा निर्दश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1