ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

देवदूत




बदहवासियों के आलम में

ई सी जी, इंजैक्शन, ऑक्सीजन…

नीम बेहोशियों, हवासों की गुमशुदगी में

उल्टियाँ, घुटन, बेचैनी, दहशत, लाचारी

हाड़ कंपाती ठिठुरन भरी सुरंग से गुजरती रूह

डॉक्टर की कड़क  नसीहतों के बीच

अचानक आना तुम्हारा और 

किसी फरिश्ते की तरह दो बार सिर सहला जाना…

कोई बात नहीं आप टेंशन न लो…रिलैक्स!

वक्त के साथ बीत चुका है सब

भूल चुकी हूँ दो दिन में ही

दर्द, दहशत, बेदिली, शोर, बदहवासी 

याद रह गई सिर्फ़ वो सम्वेदना

दिल में घुमड़ता

बादल का एक नन्हा सा टुकडा़ और उसकी नमी

जो बार बार मेरी आँखें आज सुबह से नम किए है

डॉक्टर के भेष में कुछ देवदूत चुन कर

भेजते हैं भगवान इंसानों के तन का ताप हरने 

और उनमें से कुछ होते हैं जो 

फरिश्ते बन हाथ के साथ मन को भी थाम लेते हैं 

उस दिन मुझे भी थाम लिया था उसने 

एक देवदूत बन कर…!!


Usha Kiran

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदय से आभार मेरी रचना शामिल करने के विए यशोदा जी🙏

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 8 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को शामिल करने का बहुत आभार पम्मी जी !

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-09-2021) को चर्चा मंच      "भौंहें वक्र-कमान न कर"     (चर्चा अंक-4181)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह, देवदूत ही होते है, डॉक्टर । विषम परिस्थितियों में पीड़ा हरने वाले । सुन्दर रचना ।

    जवाब देंहटाएं

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...