ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

शरीफजादा



बस में खिड़की से बाहर देखती चित्रांगदा के चेहरे और लटों से ठंडी हवाएं सरगोशियाँ कर रही थीं । हैडफोन कान से लगा कर वो गुलाम अली की गजलेों में गुम अपनी ही दुनिया में मस्त आँखें मूँद खिड़की से सिर टिकाए थी कि सहसा उसे अपनी कमर पर कुछ स्पर्श महसूस हुआ। पास बैठे लड़के को संदिग्ध दृष्टि से देखा तो निहायत संजीदा सा लड़का चुपचाप बहुत ध्यान से अख़बार पढ़ रहा था।बायाँ हाथ जो उसकी तरफ था उससे अख़बार पकड़ रखा था तो उसके द्वारा टच नहीं किया जा सकता था। लगा उसका वहम है पर जागरूक होकर स्थिर बैठ गई।

थोड़ी देर बाद फिर लगा किसी ने बाँह को छुआ तो उसने झटके से देखा अखबार की ओट से दूसरे दाएँ हाथ की उँगलियाँ साँप सी सरसराती दिखाई दीं। चित्रा के दाँत गुस्से से भिंच गए कुत्ते छेड़खानी के कितने तरीके निकाल कर लाते हैं। 

चित्रा ने एक झन्नाटेदार झापड़ चटाक् से उसके गाल पर रसीद कर दिया।चारों उँगलियाँ गाल पर छप गईं।आसपास बैठे लोगों में हलचल सी हुई।

- अरे मैंने क्या किया ? 

- कुछ नहीं…मच्छर बैठा था, बस मार दिया !

चित्रा का स्टॉपेज आ गया था पर्स उठा कर मुस्कुराते हुए बस से नीचे उतर गई। आसपास के लोगों  के चेहरों पर भी मुस्कान थी। 

शरीफजादा यथावत अख़बार में चेहरा छुपाए पेपर पढ़ता रहा।

Usha Kiran

17 टिप्‍पणियां:

  1. शरीफजादा अब सपने में भी मच्‍छर से डरेगा,बहुत खूबसूरत और प्रेरणादायक भी... ताक‍ि कोई और शरीफजादा न बने... शानदार लघुकथा ऊषा जी

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-०९-२०२१) को
    'हे गजानन हे विघ्नहरण '(चर्चा अंक-४१८३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. समाज में ऐसे साहस की बहुत ज़रुरत है आज ...
    जागरूक करती है आपकी लघुकथा ...
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई ...

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  4. वाह! पढ़कर आनंद आ गया! बहुत ही शानदार प्रस्तुति!
    झन्नाटेदार झापड़ की आवाज बिना सुने ही लग सुनाई दे रही है बहुत ही शानदार लघुकथा!

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    उत्तर
    1. हा हा…आपको चाँटे की आबाज सुनने का बहुत शुक्रिया 😂

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  5. ऐसे ही इनाम के हकदार होते हैं ऐसे छुपे शरीफजादे
    बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. हा हा हा... चित्रा की ओर से एक अच्छी प्रतिक्रिया! बस में बैठे कुछ ऐसे ही अन्य शरीफ़ लोगों को भी कुछ शिक्षा मिली ही होगी।

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