ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

रविवार, 5 सितंबर 2021

लाफिंग क्लब (लघुकथा )






शादी के बारह साल बाद भी मोहन के कोई बच्चा नहीं था। घरवाले सब दूसरी शादी के लिए दबाव बना रहे थे।जब वो छुट्टी में पहाड़ जा रहा था तो मैंने कहा मीना को यहाँ ले आओ इलाज करवाते हैं।तो गाँव जाने पर मेरे कहने से अपनी बीबी मीना को भी ले आया साथ। 

सालों बाद दोनों साथ-साथ रहते बहुत खुश थे।किचिन में काम करते समय धीरे- धीरे पहाड़ी गीत गाते रहते।मैं किसी काम से किचिन में जाती तो उनका  मीठा सा पहाड़ी गान सुन कर दबे पाँव मुस्कुरा कर वापिस लौट आती।

एक दिन सुबह- सुबह सिम्बा को घुमाने ले जाते समय मोहन, मीना को भी साथ ले गया। दिसम्बर की सर्द कोहरे से भरे मैदान से मीना ने देखा पास के पार्क में कुछ धुँधली सी आकृतियाँ जोर-जोर से हँस रही हैं।

-हैं ये कौन हैं ?

- ये भूत हैं जैसे हमारे पहाड़ों में होते हैं वैसे ही। 

मोहन को मजाक सूझा।मीना ताबड़तोड़ भागी, सीधे घर आकर साँस ली।आकर मुझसे जिक्र कर रही थी तो मुझे बहुत जोर से हंसी आ गई।

- अरे यहाँ शहरों में भूत नहीं होते तू डर मत। वो तो लाफिंग- क्लब के लोग थे हंसने की प्रैक्टिस कर रहे थे।

- हैं… वो क्या होता ?

- अरे कैसे बताऊं ? समझ ले एक क्लास होती है जहाँ सब बैठ कर हँसते हैं साथ-साथ।

- हैंऽऽऽऽ सहर में पढ़ाई की तरह हंसना भी सीखना होता ? हमारे पहाड़ में तो मुफ्त में ही हम सारे दिन हंसते।लकड़ियाँ बीनते, जिनावर चराते, खेत जोतते..हरदम हंसते रहते। बताओ यहाँ तो हंसना भी सीखते….! 

वो ताली बजा कर जोर-जोर से पहाड़ी झरने सी उन्मुक्त हंसी हंस रही थी और मैं चुपचाप किचिन से बाहर आ गई।

Usha Kiran

रेखाँकन: उषा


21 टिप्‍पणियां:

  1. शहर में भला कहाँ इतनी उन्मुक्तता ।
    सोचने पर मजबूर करती लघुकथा

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06-09-2021 ) को 'सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंगी अब तक' (चर्चा अंक- 4179) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना का चयन करने का बहुत शुक्रिया रवीन्द्र जी

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना सोमवार. 6 सितंबर 2021 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  4. यह लाफिंग क्लब मुझे भी आजतक समझ में नहीं आया . बढ़िया कथा.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हा शिखा मुझे भी नहीं समझ आता लेकिन कुबलोगों को तो लाभ मिलता ही है😊

      हटाएं
  5. खोखली हंसी के सत्य को उजागर करती कथा ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अब पहाड़ के लोगो के लिए तो वाकई आश्चर्य जनक है ये शहरी क्रियाकलाप...
    बहुत ही सुन्दर लघुकथा।

    जवाब देंहटाएं

मुँहबोले रिश्ते

            मुझे मुँहबोले रिश्तों से बहुत डर लगता है।  जब भी कोई मुझे बेटी या बहन बोलता है तो उस मुंहबोले भाई या माँ, पिता से कतरा कर पीछे स...