ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

प्रेम



कह देना

इतना आसान होता है क्या ?

किसी से कह देने से पहले 

जरूरी होता है खुद से कहना

और जब दिल सुनना ही न चाहे

बार- बार एक ही जिद-

प्रेम कहा नहीं,जिया जाता है

प्रेम कहा नहीं,ओढ़ा जाता है

प्रेम कह देने से मर जाता है 

प्रेम पा लेने से सड़ जाता है

प्रेम है तो उसे बहने दो

गुप्तगोदावरी सा अन्तस्थल में…

और यदि तुमको प्रेम है मुझसे 

तो तुम भी न कहना 

प्रेम यदि है तो मौन रहो

कुछ न कहो 

प्रेम में हो जाना चाहता  है मन 

खुद गुलमोहर 

या कि अमलतास !

बस उसे चुपचाप 

खुद पर बीत जाने दो

बिल्कुल किसी मौसम की तरह...!!

    —उषा किरण 🌼🌿

2 टिप्‍पणियां:

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