अचानक से जब मिलकर कोई
परिचित सा मुस्कुराता है
बतियाता है…
तो चौंक जाती हूँ
उलझन में सोचती हूँ
कैसे …कैसे पहचाना मुझे
तब धीरे से याद दिलाती हूँ
एक चेहरा भी है तुम्हारे पास
मैं हैरानी से शीशे के सामने जाकर
खड़ी हो जाती हूँ
बादलों की धुंध में डूबे उस चेहरे को
देर तक घूरती हूँ
और पूछती हूँ खुद से
क्या वाकई….??
**
— उषा किरण 🍃
फोटो; गूगल से साभार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें