ताना बाना

मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले

तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं

और जब शब्दों से भी मन भटका

तो रेखाएं उभरीं और

रेखांकन में ढल गईं...

इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये

ताना- बाना

यहां मैं और मेरा समय

साथ-साथ बहते हैं

शनिवार, 20 सितंबर 2025

यूँ गुज़री है अब तलक, आत्मकथा



 प्रिय सीमा जी🌺

   'यूँ गुज़री है अब तलक ‘ पढ़कर अभी समाप्त की है। मन इतना अभिभूत व आन्दोलित है कि कह नहीं सकती। बहुत सालों बाद किसी किताब ने मुझे ऐसा जकड़ा कि 307 पेज लगातार दो दिन तक सब कुछ भूल कर एक साँस में पढ़ गई।सोचिए मैं इतना खो गई कि परिवार का एक-एक रोटी का संघर्ष पढ़ते-पढ़ते ज़ोर की भूख लगी तो शाम को पाँच बजे ही दो पूड़ी सब्जी बनाकर खाने बैठ गई। 

किसी के व्यक्तित्व के बारे में पढ कर या सुनकर हम जजमेन्टल हो जाते हैं , परन्तु सच तो सौ पर्दों में छिपा  होता है। यह आत्मकथा एक दस्तावेज़ है आपके साधनापूर्ण जीवन का, आपकी सच्चाई का , एक सम्वेदनशील, क्रिएटिव, स्वाभिमानी , जुझारू व्यक्तित्व के संघर्ष की आग में तपकर धीरे-धीरे आध्यात्मिक पथ की साधिका के रूप में रूपान्तरित हो जाने का। करुणा व प्रेम को अपना कर स्वयं बुद्ध हो जाने का। जहाँ न कोई चाह बाकी रहे न लोभ, न क्रोध है न घृणा, न ईर्ष्या है और न हि प्रतिशोध। कुछ है तो बस करुणा , क्षमा और प्रेम। जो न ऊंच- नीच देखता है और न हि हानि लाभ। जो भी, जैसा सामने आया सहजता से सिर माथे लिया और चल पड़ीं। जो नहीं मिला या किसी ने छीन लिया तो उसे भी सहजता से , बिना झगड़ा- झंझट सब त्याग कर आगे बढ़ गईं, आसान नहीं है ऐसा सबके लिए कर पाना। 

ओमपुरी जी ने आपके साथ जैसा छल किया उसके बाद भी उनके दुःख की साथी बनीं, उनके प्रेम का तिरस्कार कभी नही किया, भले ही बदले में तमाम मुसीबतें व तोहमतें झेलती रहीं । हमेशा उनके मासूम कलाकार मन को समझा व सम्मान किया। किसी के सामने न शिकायत की न ही अपनी कैफ़ियत पेश की। किसी सामान्य स्त्री के लिए यह कर पाना असम्भव है। 

लोग कहते होंगे आपको मूर्ख तो कहते रहें आपकी अन्तर्रात्मा तो करुणा व प्रेम की रोशनी से सराबोर रही।सच तो ये है कि मुझे भी कई बार लगा कि आप क्यों नहीं सब बंधन को एक झटके से तोड़ देती हैं । बाद में समझ आता है कि ये गहरी आत्मा से किया प्रेम था , 'मैत्री ‘थी। जहाँ मैं तुम का भेद नहीं रह जाता। बहुत अभागे रहे वे , जिन्होंने इस अमूल्य निधि को पाकर बेकद्री से ठुकराया और फिर ताउम्र तरसते रहे। जिस अजन्मे अपने शिशु को ही अपमानित व  लाँछित किया  फिर अन्तिम साँस तक  पुत्र व पत्नि के प्यार व सम्मान को तरसते हुए ही प्राण त्यागे, यही प्रारब्ध  है जो इस जन्म में या अगले जन्म में भोगना ही पड़ता है….पर ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वे फिर नहीं आते…!’

ये आत्मकथा लिखकर आपने प्रतिपक्ष के सारे दावों व कुटिल चालों  को एक पल में नेस्तनाबूत कर दिया और सच्चाई की रोशनी में अपने दाग़ों को धोकर आलोकित प्रकाश में अपनी जगह बनाकर अपनी गरिमा को  मजबूती से स्थापित किया है। ये एक बहुत मार्मिक श्रद्धांजलि भी है अपने माता-पिता व पुरी साहब व अन्य के प्रति। ये पुस्तक हर उस व्यक्ति के प्रति आभार भी है जो दो कदम भी साथ चला। साथ ही जिनके प्रति कुछ भी अप्रिय हुआ उनसे क्षमायाचना भी है। कुल मिलाकर आपने खुद को उलीच कर खाली किया है। 

यह पुस्तक उन सभी लोगों को तो जरूर ही पढ़नी चाहिए जो बड़े मजे से प्रेमिल पत्नि या पति के होते हुए भी इधर-उधर पोखरों  में डुबकियाँ मारना अपना अधिकार मानते है। वे पुरुष जो अनेक औरतों के प्रति लोलुप रहकर , काम- वासना के वशीभूत होकर अपनी प्रेयसी या पत्नि को अपमानित करते है, लेकिन जब किसी के जालिम फन्दे में फंस जाते हैं तब छटपटाते हैं, उसी वापिस ममतामयी ठंडी छाँव के लिए…पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

पुरी साहब के बारे में जो कुछ न्यूज में पढ़ा व सुना था उससे उनके प्रति जुगुप्सा हो गई थी। अब आपको पढ़कर उनके प्रति वाकई दया व करुणा का भाव उपजता है।इस जगत में हम मानव शरीर लेकर आए हैं कुछ सबक लेने के लिए, आत्मोन्नति के लिए , लेकिन मोह- माया, राग- विराग, मन व इन्द्रियों के झिलमिल कृत्रिम रोशनी की चकाचौंध में , तामसिक निद्रा में लीन अपना गन्तव्य भूल जाते हैं । जो ईश्वर के प्रिय हैं, जो पिछली साधना करके आए हैं परमात्मा उनको फिर कुछ न कुछ ठोकर देकर जगाए रखते हैं । 

सीमा जी, आपने अब प्रकृति की छाँव तले बुद्ध की शरण में ध्यान, करुणा व शान्ति का मार्ग चुना है। मन की वही बचपन वाली अबोध अवस्था को जी रही हैं यह बहुत शुभ संकेत है।जी चाह रहा है और बहुत कुछ लिखूँ परन्तु मन इतना भरा हुआ है कि अभी पढ़े हुए को मनन करना चाहता है।

विभा रानी का बहुत शुक्रिया। उनके यूट्यूब चैनल 'बोले विभा’ पर उनकी वीडियो देखी जिसमें वे डाकू माधोसिंह वाला प्रकरण पढ़ रही थीं तो उत्सुकतावश इतनी अच्छी किताब मंगवा कर पढ़ी ।आपकी अब जितनी मिलेंगी वे मूवी यूट्यूब पर देखूँगी । मेरी आदत है रियल लाइफ का हो या कहानी क़िस्सों का,  हर किरदार को डूब कर पढ़ती हूँ ।

इतनी सुन्दर प्रेरणादायी किताब लिखने के लिए बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ।मेरी दुआ है आप पर अब कोई मुसीबत कभी न आए। आप इसी तरह निरन्तर साधना पथ पर चलकर परमात्मा को प्राप्त करें…आमीन…धन्यवाद!!

- उषा किरण 🌿

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