शिवना साहित्यिकी में शिखा वार्ष्णेय लिखित पुस्तक `पाँव के पंख’ की समीक्षा प्रकाशित-
ताना बाना
मन की उधेड़बुन से उभरे विचारों को जब शब्द मिले
तो कुछ सिलवटें खुल गईं और कविता में ढल गईं
और जब शब्दों से भी मन भटका
तो रेखाएं उभरीं और
रेखांकन में ढल गईं...
इन्हीं दोनों की जुगलबन्दी से बना है ये
ताना- बाना
यहां मैं और मेरा समय
साथ-साथ बहते हैं
शुक्रवार, 11 अगस्त 2023
पुस्तक समीक्षा- पाँव के पंख
शिवना साहित्यिकी में शिखा वार्ष्णेय लिखित पुस्तक `पाँव के पंख’ की समीक्षा प्रकाशित-
शुक्रवार, 16 जून 2023
दर्द का चंदन- उषा किरण
साहित्यनामा पत्रिका में `दर्द का चंदन' पर बहुत अनोखी परन्तु सटीक समीक्षा लिखी है रचना दीक्षित ने । एक शुक्रिया तो बनता है रचना जी। आइए देखें क्या लिखती हैं वे😊
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एक पाती उषा जी के
प्रिय उषा जी,
आपकी किताब ‘दर्द का चंदन’ नाम पढ़कर भी उस दर्द की पराकाष्ठा को न समझ पाने की भूल कर के पढ़ने लगी क्योंकि अगर पहले से कुछ पता होता तो शायद न पढ़ती। दर्द की गलियों से निकलकर कौन दोबारा उन गलियों में जाना चाहेगा। जब तक पिताजी की और भाई की बीमारी का जिक्र चल रहा था मन असहज होते हुए भी सहजता से पढ़ने का स्वांग करती रही। पर जब आपकी बीमारी का जिक्र आया तो यूं लगा दुखती रग पर किसी ने उंगली नहीं पूरा का पूरा कैंसर रख दिया हो। मैंने किताब रख दी पर फेसबुक पर आपने आग्रह किया कि मैं पढूं क्योंकि दुःख–सुख तो जीवन में आते रहते हैं। सोचने की बात है कि दूसरे को ऐसी सलाह देने और स्वयं उस पर अमल करने में बहुत अंतर होता है जो आपने असल में अपने जीवन में कर दिखाया। दोबारा किताब खोली। मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन की जगह दर्द का चंदन आपकी ही पंक्तियों से उठा कर माथे पर एक त्रिपुंड सजा लिया और "दर्द हद से बढ़ा तो रो लेंगे, हम मगर आपसे कुछ न बोलेंगे" को मन में बैठा कर मैं दर्द की भूल-भुलइयों में खोने लगी। मेरी अपनी कविता भी रिसने लगी:
पोर पोर पुरवाई उकसाती पीर
बढ़ता ही जाता है सुधियों का चीर
मेरी मां को गर्भाशय का कैंसर हुआ था जब वह 35 साल की थी और यूटरस निकालना पड़ा था। फिर बाद में लगभग 25 साल बाद उन्हें ब्रेस्ट कैंसर भी हुआ पर तकलीफों के साथ भगवान ने उनकी उम्र लिखी थी तो वो अपनी जिंदगी बहुत तो नहीं पर ठीक ठाक जी गईं। इसीलिए ग्रुप में जब कभी बचपन की बात होती है, मायके की बात होती है, मैं चुपचाप खिसक जाती हूँ। बताती चलूं मेरी माँ को दोनों बीमारी थीं तो मैं मेरे लिए तो जोखिम था ही। पहले तो लगातार स्त्री रोग विशेषज्ञ से चेकअप करवाती रही फिर रेगुलर एनुअल हेल्थ चेकअप पर आ गए। इसी बीच बात शायद 23 नवंबर की होगी, एक बार 2018 में एनुअल हेल्थ चेक अप के दौरान ब्रेस्ट में दो गाँठे निकली। फिर क्या था शुरू हो गया भाग दौड़ और टेस्ट का कार्यक्रम। उस समय घर पर कुछ मेहमान थे। इधर हमारा 15 दिन का दुबई और मॉरीशस का टिकट काफी पहले ही हो चुका था। फिर मेहमानों के जाने बाद आनन-फानन में एक सर्जरी हुई 28 नवंबर को फिर उसकी रिपोर्ट आई जो भगवान की कृपा से सामान्य निकली। यूं लगा जान बची तो लाखों पाए। 12 दिसंबर की फ्लाइट थी 10 दिसंबर को टांके कटे, 11 को पार्लर गई, 12 की फ्लाइट पकड़ ली, पर हां, पूरे समय सफर में ध्यान बहुत रखना पड़ा।
यह उपन्यास नहीं ये एक संघर्ष गाथा है, इसे उपन्यास कहना दर्द का अनादर करने जैसा होगा। एक्स रे कक्ष के बाहर लिखा होता है, बिना जरूरत अंदर प्रवेश न करें, विकिरण का खतरा है पर आपने तो नियमों की भयंकर अनदेखी कर दी। विकिरणों को इस कदर हवा दी कि कोई अंदर गया भी नहीं और विकिरणों से छलनी हो गए सबके मन आत्मा और हृदय। यहां दर्द को चंदन के फाहों में लपेट कर उसे शीतलता देने का प्रयास है, ताकि पढ़ने वालों को दर्द की अनुभूति कम हो पर दर्द तो दर्द है। चंदन के भीतर भी कराह उठा स्याही में घुल कर दर्द ने परिसंचरण का रास्ता अपनाया और ले लिया किताब के पहले पन्ने से आखिरी पन्ने तक को अपने आगोश में।
अब बात करें आपकी, तो भाई के लिए आकंठ प्रेम मानव, मानवता, प्रकृति और जानवरों के प्रति आपका लगाव आपकी सकारात्मक सोच। यहां कल्पना के लिए कोई जगह नहीं है मात्र भोगा हुआ यथार्थ है। शब्दों पर कहीं भी कल्पना का मुलम्मा नहीं चढ़ा है। अपनी अंतहीन पीड़ा के साथ अपनों को खोने का दुःख, वो भयावह पल ‘दुआओं का हाथों में स्ट्रेचर पकड़ साथ साथ चलना’ ‘दवाइयों की महक, औजारों की खनक’ को आत्मसात करना, दर्द, पीड़ा और नकारात्मकता को रोज उठा कर हवन कुंड में डाल स्वाहा करना, समेटना, पुस्तक का रूप देना। हर चीज चलचित्र की तरह आंखों के सामने से गुजरती रही और उसे अंदर तक महसूस करती आपके साथ-साथ मैं भी। बीच बीच में हंसी ठिठोली के बहाने ढूंढते शब्द। टूटी चूड़ियों की माला, गुट्टे खेलना बचपन में लौटना और अपने साथ सबको ले के जाना भी जादूगरी से कम नहीं है।
बीच बीच में गौरव और सीमा का किस्सा, मात्र दो लोगों का परिवार उसमें अकेले सब कुछ करना और न कर पाने की टीस, इंटरकास्ट मैरिज, उससे उठते प्रश्न। अपनी पीड़ा के बीच दूसरे की पीड़ा को समझना और उन्हें दिलासा देना,
प्रोमेनेड बीच’ पर सूर्यास्त, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद गुरु का कष्ट और शिष्य की चिंता और विवशता आपके दर्द में पूरी तरह डूब कर बाहर आने की बात कहता है तब मेरी ही कुछ पंक्तियां अनायास कलम थाम लेती हैं:
कांपते होंठों से
जब दर्द कुतरा था तुमने
दर्द अपने लिबास उतारने को
आतुर हो गया
मैं ज्वालामुखी सी
पिघल कर बहने लगी थी
अस्पताल के पोस्टरों में लिखी बातें जो लोगों को जागरूक करने के लिए होती हैं पर मुश्किल समय में कोई इन पर ध्यान नहीं देता। उस समय तो मात्र एक ही उद्देश्य होता है किसी भी कीमत पर लड़ाई जीतना। अपना घर, अपनी जमीन बेचकर इलाज करवाने को मजबूर लोग, बीमारी और उससे जुड़ी हुई तमाम बातों को इतना विस्तार से लिखना जिससे आम लोग जागरूक हो सकें। कैंसर सेल की सजगता और उनके शैतानी ख्याल, एंटीजन और एंटीबॉडीज का खेल जिसे पढ़ मचल उठी मेरी एक विज्ञान कविता:
आंखों की तरलता
सारी बंदिशें तोड़ चुकी थी
इस सरसराहट ने
दशकों से शांत
रक्त में विचर रही
शरीर की
टी स्मृति कोशिकाओं को
सक्रिय कर दिया
फिर क्या था
एंटीजन पहचाना गया
रक्त में एंटीबॉडीज मचलने लगीं
मुहब्बत की उदास रात की सांसों
पर किसी ने तकिया रख दिया
दर्द के उत्तराधिकारी उमड़ने लगे
एक खुशनुमा मौसम
पहन कर एंटीबॉडीज ने
अंतिम नृत्य प्रस्तुत किया।
आपने क्या सोचा था, मेरी जैसी चाची, ताई, बुआ, मौसी, मामी को शादी में न बुला कर इग्नोर करेंगी और हम मान जायेंगे। यहां तो मान न मान मैं तेरा मेहमान। मैं तो गेटक्रेशर हूं सो बच्चों की शादियों में बिन बुलाए मेहमान की तरह गेट क्रैश कर हो आई और बच्चों के सर पर चिरायु होने का आशीर्वाद भी दे आई। जानती हूँ चुनौतियों के बिना जीवन भी क्या जीवन है, पर ये सिर्फ सुनने में ही अच्छा लगता है, यथार्थ इसके विपरीत है। ये भी उतना ही सच है कि बड़ी लड़ाई या चुनौती जीतने के बाद इंसान में जो निखार आता है वो किसी दूसरी तरह से नहीं आ सकता।
आपके व आपके परिवार के सुखद जीवन की कामना के साथ।
रचना दीक्षित
बुधवार, 14 जून 2023
शान्ति निकेतन, सोनाझुरी- हाट और बाउल गीत
कलकत्ता जाने पर हम लोगों ने जब दो दिन के लिए शान्तिनिकेतन जाने का प्रोग्राम बनाया तो कुछ लोगों ने कहा कि शांति निकेतन और बंगाली माहौल को देखना है तो आपको सोनाझुरी हाट जरूर देखना चाहिए। सोनाझुरी हाट के नाम से प्रसिद्ध यह हाट हर शनिवार को खोई नदी के तट पर लगती है। शनिवार को ही हम लोग शान्ति निकेतन पहुँचे थे तो खाने के बाद आराम करके शाम को हाट के लिए निकल लिए। यह एक खुला बाजार है जहां हम आदिवासी वस्तुओं और कई अन्य सामान खरीद सकते हैं। इसमें ग्रामीण इलाकों से आर्टिस्ट आते हैं और अपने हाथों से बनाए सामान बेचने के लिए लाते हैं । यहाँ आदिवासियों द्वारा बनाई बहुत सुन्दर पेटिंग्स भी बहुत कम दाम पर बिकने के लिए आई हुई थीं। हमने भी कॉपर के तारों से बनी दुर्गा जी व गणेश जी की दो छोटी पेंटिंग खरीदी। कान्था कढ़ाई की सा़ड़ियाँ भी बिकती देख एक हमने भी खरीद ली।
कुछ संथाल जनजाति के लोग समूह में गाते हुए डांस कर रहे थे तथा कुछ स्थानीय बाउलों द्वारा गाए जाने वाले अद्भुत गान को सुन कर मैं मुग्ध होकर थम गई। पैरों को जैसे किसी ने जकड़ लिया हो। मन आनन्दमिश्रित करुणा से भीग गया। कैसी साधना होगी इस गायन के पीछे लेकिन एक कपड़ा बिछा कर जिस पर चन्द सिक्के व रुपये पड़े थे हरेक आने- जाने वालों पर गाते हुए आशा भरी करुण दृष्टि डालने वाले ये कलाकार कितनी बदहाली में जीते होंगे। देश - विदेश में जब भी मैं किसी को गा बजाकर भीख माँगते देखती हूँ तो मेरा कलेजा मुँह को आता है।बहुत ही कष्ट होता है लगता है काश…..!
बाउल के गीत अक्सर मनुष्य एवं उसके भीतर बसे इष्टदेव के बीच प्रेम से संबंधित होते हैं।बाउल, बंगाल की तरफ लोकगीत गाने वालों का एक ग्रुप होता है। ये बाउल धार्मिक रीति रिवाजों के साथ गीतों का ऐसा सामंजस्य बिठाते है की ये लोकगीत सुनने लायक होते है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग या तो हिन्दू वैष्णव समुदाय से ताल्लुक रखते हैं या फिर मुस्लिम सूफ़ी समुदाय से। कहा जाता है कि संगीत ही बाउल समुदाय के लोगों का धर्म है। उन्हें अक्सर उनके विशिष्ट कपड़ों और संगीत वाद्ययंत्रों से पहचाना जा सकता है। बाउल संगीत का रवींद्रनाथ टैगोर की कविता और उनके संगीत (रवींद्र संगीत) पर बहुत प्रभाव था।
ऐसा भी कहते हैं कि बाउल संगीत का मुख्य उद्देश्य अलग अलग जाति, समुदाय धर्म के लोगों को एक कर संगीत के द्वारा उनमें एकता का संचार करना है।ये गायक भगवा वस्त्र धारण किये हुए होते हैं। इनके बाल बड़े होते हैं जिन्हें ये खुले रखते हैं या जूड़ा बांधते हैं। ये लोक गायक हमेशा तुलसी की माला और हाथों में इकतारा लिए हुए होते हैं। इन लोगों का मुख्य व्यवसाय भी संगीत है, ये एक स्थान से दूसरे स्थान घूम घूम के लोक गीत गाते हैं और उससे प्राप्त पैसों से गुज़र बसर करते हैं। केंडुली मेले के ही दौरान ये सभी लोग अपनी भूमि पर जमा होते हैं और बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ अपना ये खूबसूरत पर्व मनाते हैं।
बाउल के दो वर्ग हैं: तपस्वी बाउल जो पारिवारिक जीवन को अस्वीकार करते हैं और बाउल जो अपने परिवारों के साथ रहते हैं। तपस्वी बाउल पारिवारिक जीवन और समाज का त्याग करते हैं और भिक्षा पर जीवित रहते हैं। उनका कोई पक्का ठिकाना नहीं है, वे एक अखाड़े से दूसरे अखाड़े में चले जाते हैं ।
सेनाझुरी हाट का सबसे बड़ा हासिल था बाउल गान से प्रेम, जो आज भी आँखें बन्द करते ही मेरे कानों में गूँजने लगता है। और इस प्रेम के चलते अब तक तो मैं यूट्यूब पर ढूँढ कर न जाने कितने बाउल गीत सुन चुकी हूँ ।
— उषा किरण 🌿🍂🍃🎋
बुधवार, 24 मई 2023
कोकून
क्या कभी सोचा है ?
वे जो अपने कोकून में बन्द हो बुनते रहते हैं गुपचुप रेशमी ताना- बाना
ताकि हम दो पल मिलजुल बैठ सकें सुकून से रेशमी अहसास के तले
वे जुटाते रहते हैं अपनी ममता, अपना वक्त, अपनी कोमल सम्वेदनाएं
वे गुपचुप तुम्हारी धूप चुरा कर शीतल फुहार में बदल देना चाहते हैं
उनका मकसद ही है कुछ रेशम-रेशम बुनना, रेशम-रेशम हो जाना…
क्यों डालना है उनको आजमाइश में ?
रहने दो न उनको अपने रेशमी कोकून में गुम
पर नहीं…तुम तो तुम हो
तुम उनके बुने रेशमी धागों को आजमाते हो…तोड़ते हो….चटाक्
क्योंकि हक है तुम्हारे प्यार का…!
प्यार ? तुम भूल जाते हो कि कोई भी बुनावट ताने-बाने से ही बनती है शक या जोर आजमाइश से नहीं
याद है न बचपन में रटते थे-
"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए
टूटे से फिर न जुड़े जुडे गाँठ पड़ जाय…!”
इससे पहले कि वे आहत हो समेट लें अन्दर अपने ही अहसासों के
रेशमी गुच्छे और उनमें मुँह छिपा खुद ही का दम घोंट लें
सुनो आजमाइश करने वालों…
समझो तड़ाक- फड़ाक करने वालों
ये कोई भवन नहीं जो ईंट गारे से बनता हो
जिसमें लकड़ी सरिए लोहा खपता हो
कोमल रश्मियों से बुना बेहद नाज़ुक वितान है ये
सम्भल जाओ… रुक जाओ…!
रेशम बुनने वाले मन बहुत कोमल होते हैं
कान लगा कर सुनो ध्यान से उनके मधुर रागिनी में बजते अन्तर्नाद में छिपे विलाप को
बेशक वे तुम्हारी धूप चुराने का हौसला रखते हों पर धूप से झुलसते वे भी हैं
पाँव उनके भी लहुलुहान होते हैं ?
जिन रास्तों से गुजर कर वे तुम तक आए
बेशक वे फूलों भरे तो न होंगे
कोई भी रास्ता सिर्फ़ फूलों भरा कब होता है भला ?
तो यदि तुमको प्यार है रेशमी छाँव से तो
रेशम बुनने वाले उनके हाथों को थमने मत देना
इससे पहले कि वे गुम हो जाएं अपने ही घायल जज़्बातों के बियाबान में
रुक जाना, थाम लेना बढ़ कर उनके थके हाथों को
सहला देना लहुलुहान हुए पैरों को…!
—उषा किरण 🍂🌱
गुरुवार, 18 मई 2023
कौसर मुनीर-बेहतरीन महिला गीतकार
किसी नए गाने को सुन कर जब भी मन ठिठक गया, कदम थम गए, कान एकाग्रचित्त हो सुनने लगे तो सर्च करने पर पाया कि वो गाना कौसर मुनीर का लिखा हुआ है। समकालीन महिला गीतकारों में मैं कौसर मुनीर को सबसे ज़्यादा नम्बर दूँगी। गुलजार साहब के बाद गानों में कविता डालने का काम जितनी ख़ूबसूरती से वे करती हैं लाजवाब हैं।
अगर बॉलीवुड में महिला गीतकारों की बात करें, तो उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है।50 के दशक में सरोज मोहिनी नैय्यर, माया गोविंद, जद्दनबाई, वहीं 90 के दशक में रानी मलिक और आजकल बॉलीवुड में लगभग 10 महिला गीतकार सक्रिय हैं जिनमें कौसर मुनीर, अन्विता दत्त, प्रिया पांचाल, सोना मोहापात्रा, शिवानी कश्यप, रश्मि विराग प्रमुख हैं. अभी अन्विता, कौसर और रश्मि विराग की जोड़ी को छोड़ दो तो कोई भी महिला लगातार नहीं लिख रही है।
पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपनी मौजूदगी मज़बूती से दर्ज करा रही कौसर ने बतौर गीतकार अपने करियर की शुरुआत टेलीविजन शो जस्सी जैसा कोई नहीं के टाइटल ट्रैक से की थी। उसके बाद उन्होंने फिल्म टशन का सुपरहिट गाना फलक तक के बोल लिखे। इस गाने के हिट होने के बाद वह हिंदी सिनेमामें जाना-माना चेहरा बन गयी। तब से अब तक उन्होंने कभी मुड़ कर नहीं देखा। उसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की कई सुपरहिट फिल्मों इश्क्जादे, धूम 3, एक था टाइगर जैसी फिल्मों के गानें लिखे। इसके अलावा वह फिल्म इंग्लिश-विन्ग्लिश में बतौर लैंग्वेज कन्सल्टेंट के काम कर चुकी हैं। कौसर मुनीर कविता भी बहुत सुन्दर लिखती हैं उनकी कविताओं के कुछ वीडियो यूट्यूब पर भी सुने एक देखे जा सकते हैं ।
कौसर मुनीर द्वारा लिखे गए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक फिल्म पैडमैन (2018) के लिए आज से तेरी है -
आज से तेरी सारी
गलियां मेरी हो गयी
आज से मेरा
घर तेरा हो गया
आज से मेरी सारी खुशियाँ
तेरी हो गयीं
आज से तेरा गम मेरा हो गया…!
स्वानंद किरकिरे के मुताबिक़ "कई बार किसी महिला के लिखे गीत को सुनते वक़्त समझ आता है कि शायद यह एंगल गाने में एक पुरूष डाल ही नहीं सकता था. वो हमारे गीतों को एक नया आयाम देती हैं."
इसी तरह फलक गीत आया। हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट गई, लेकिन फलक गाना खास रहा। इसी तरह कला फिल्म का गाना फेरो न नजरिया- तो मन मोह लेता है और सभी के मन में घर कर गया। सिरीशा भगवतुला ने इसे विरह में डूबकर गाया है. उन्हें सुनकर लगता है, जैसे उनकी आवाज़ मन के किसी दर्दीले कोने से आ रही हो।
तारों को तोरे ना छेड़ूँगी अबसे
तारों को तोरे ना छेड़ूँगी अबसे
बादल ना तोरे उधेड़ूँगी अबसे
खोलुंगी ना तोरी किवड़िया
फेरो ना नजर से नजरिया…!
अभी फ़िलहाल तो जिक्र "मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे” फिल्म के गाने का- आमी जानी रे बहुत ही मधुर गाना है।इसी फिल्म के दो और गाने शुभो- शुभो और माँ के दिल से भी सुनने लायक है। रानी मुखर्जी कहती हैं कि -"मां के दिल से…उन बेहतरीन गानों में से एक है जिसे मैंने हाल के दिनों में सुना है जो मां-बच्चे के रिश्ते को इतनी खूबसूरती से परिभाषित करता है। पहली बार जब मैंने गाना सुना तो मैं कौसर द्वारा लिखे गए शब्दों से बेहद प्रभावित हुई, मैं केवल अपनी मां और अपने बच्चे तथा एक बेटी से मां बनने तक की अपनी यात्रा के बारे में सोच सकती थी। गाने की पूरी सोच यह है कि मां बच्चे को जन्म देती है या बच्चे मां को जन्म देता है।गाने को अपनी मां को समर्पित करते हुए रानी ने कहा, यह वास्तव में खास है कि यह गाना महिला दिवस पर रिलीज हो रहा है क्योंकि एक महिला के रूप में मेरा जीवन मां बनने के बाद पूरी तरह से बदल गया। मैं इस गाने को अपनी मां को समर्पित करना चाहती हूं, जिन्होंने इतने सालों में मेरे लिए कई कुर्बानियां दी हैं। मातृत्व एक शानदार जीवन शक्ति है और अनंत सकारात्मकता का कार्य है।”
आमी जानी रे
आमी जानी रे
तुमार बोली
तुमार चुप्पि भी रे
आमी जानी रे
आमी जानी रे
तुमार बट्टी भी
तुमार कट्टी भी रे
आमी जानी रे
आमी जानी रे….!
सुनिए कितना मीठा गाना है❤️
—उषा किरण
मंगलवार, 25 अप्रैल 2023
साँझ
उतर रही है साँझ
फिर तिरे दामन पे
पाँव रख
हौले से
बिखर गई गुलशन में
रक्स-ए-बहाराँ बन के….
- उषा किरण 🌸🍃🌱
रविवार, 12 मार्च 2023
छपाक
शाँत, सुन्दर, सौम्य , सजी-संवरी
नदी को देखते ही ये जो अकुला कर
शीतल निर्मल जल में गहरे पैठ
तुम बहा देते हो अपनी मलिनता
डुबोते हो अपना ताप
बुझाते हो तृष्णा
फिर जब चाहते हो
अपनी ठोकर से
मस्ती में उछाल देते हो कंकड़ और
लहरों की हलचल से पुलकित
मस्त चाल चल देते हो बेफिक्र
हंसते, गुनगुनाते…
क्या तुमने कभी सोचा है
ये है जो शाँतमना-मन्थर-गति प्रवाहित
उसके सीने में ज़ब्त हैं
कितने तूफानों की स्मृतियाँ
कितनी ताप की ऊष्मा
कितनी सर्द रातों की ठिठुरन
कितने कुहासे
कितने गहरे भँवर
कितनी दलदल
कितनी उलझी गाँठें
और कितने गहरे काले अँधेरे….
तुम तो बस उठाते हो एक कंकड़ और
पूरे जोर से उछाल देते हो उसके सीने में
छपाक….!!
— उषा किरण
खुशकिस्मत औरतें
ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें जो जन्म देकर पाली गईं अफीम चटा कर या गर्भ में ही मार नहीं दी गईं, ख़ुशक़िस्मत हैं वे जो पढ़ाई गईं माँ- बाप की मेह...